भारत को ब्रिटिश राज से मुक्त करवाने के लिए अनगिनत लोगों ने अपने जीवन को खपा दिया। कई लोग तो ऐसे थे जिन्होंने अपनी जवानी को भारत माता को दासता से मुक्त करवाने के लिए, होने वाले आन्दोलन में लगा दिया और, हॅंसते हॅंसते अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। स्वाधीनता के आंदोलन में जहाॅं युवाओं ने बढचढ़कर भागीदारी की वहीं पुरूषों के साथ महिलाओं का भी योगदान कम न था। भीकाजी रूस्तम कामा ऐसे ही नामों में शामिल नाम है।
भीकाजी कामा को मैडम कामा के नाम से भी जाना जाता है। कहीं - कहीं पर इनके नाम में उपयोग किए जाने वाले "कामा" उपनाम को "खामा" कहकर भी उच्चारित किया जाता है। मगर इनका लोकप्रिय नाम मैडम भीकाजी कामा ही है। भीकाजी कामा का जन्म 24 सितंबर 1861 को मुंबई में हुआ था। वर्ष 1896 में मुंबई में प्लेग फैला, कामा ने प्लेग रोगियों की सेवा की।
वे स्वयं इस रोग की चपेट में आ गई थीं, उपचार के बाद वे ठीक हो गई थीं ,लेकिन बाद में उन्हें उपचार हेतु यूरोप जाने के लिए कहा गया। वर्ष 1902 में वे लंदन गईं। उन्होंने भारतीय स्वाधीनता संघर्ष हेतु कार्य किया। वे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन को लेकर कई बार विदेश गईं और भारत को औपनिवेशिक शासन से मुक्ति दिलवाने के लिए आन्दोलन चलाया। वर्ष 1907 में सरदार सिंह राणा के सहयोग से उन्होंने भारत का प्रथम राष्ट्रध्वज तैयार करवाया था।
जिसे जर्मनी के स्टटगार्ट नगर में 22 अगस्त वर्ष 1907 में आयोजित हुई, 7 वीं अंर्तराष्ट्रीय कांग्रेस में भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज फहराया गया था। इससे भारत की स्वाधीनता के लिए लोग प्रेरित हुए और सभी एक ध्वज के साथ आए। इस ध्वज में हरा, पीला व लाल रंग उपयोग में लाया गया था।
इस पर बीच में वन्देमातरम् लिखा गया था और चांद, सूरज और कमल के पुष्प इस पर अंकित थे। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान कामा को कष्ट उठाने पड़े। उनकी संपत्ति जो भारत में थी जब्त कर ली गई थी। वृद्धावस्था में 13 अगस्त वर्ष 1936 में मुंबई में ही गुमनामी की स्थिति में उन्होंने अंतिम सांस ली।
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