नई दिल्ली: वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद को ध्वस्त किए जाने से पहले ही तत्कालीन केंद्र सरकार केंद्रीय सुरक्षा बलों को अयोध्या पहुंचाकर इसे रोक सकती थी। यहां तक कि उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन भी लागू किया जा सकता था। क्योंकि तत्कालीन प्रदेश सरकार के केंद्र सरकार के साथ सहयोग करने पर संशय था। तत्कालीन केंद्रीय गृह सचिव माधव गोडबोले ने मीडिया से बात करते हुए यह दावा किया है।
गौरतलब है कि 17 नवंबर तक अयोध्या मामले में शीर्ष अदालत का फैसला आना है। पूर्व केंद्रीय गृह सचिव माधव गोडबोले ने सोमवार को कहा है कि हमने केंद्र सरकार के सामने धारा 355 को लागू करने का प्रस्ताव रखा था, जिसके माध्यम से केंद्रीय बलों को मस्जिद की रक्षा के लिए उत्तर प्रदेश भेजा जा सकता था और फिर राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता था। उन्होंने कहा कि इसके लिए हमने एक बड़ी व्यापक योजना तैयार की थी, क्योंकि राज्य सरकार के केंद्र सरकार के साथ सहयोग करने की संभावना बिलकुल नगण्य थी।
हालांकि तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव को संदेह था कि ऐसी किसी भी स्थिति में राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए संविधान के तहत उनके पास शक्तियां हैं। माधव गोडबोले ने यह भी कहा कि पीएम पद पर रहते हुए राजीव गांधी ने कार्रवाई की होती तो मसले का निराकरण निकल सकता था। क्योंकि दोनों ही ओर की राजनीतिक स्थिति मजबूत नहीं थी, ऐसे में कुछ हिस्सा लेकर या देकर सर्वमान्य समाधान निकाला जा सकता था। उन्होंने आगे कहा कि पीएम रहते हुए राजीव गांधी बाबरी मस्जिद के ताले खोलने के लिए गए थे, उनके कार्यकाल में ही मंदिर की आधारशिला रखने का समारोह आयोजित किया गया था, इसी कारण से मैंने उन्हें राम मंदिर आंदोलन का दूसरा कार सेवक कहा है। पहले कारसेवक तत्कालीन डीएम थे जिन्होंने यह सब शुरू किया।
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