आज है मधुश्रावणी व्रत, जरूर सुनना चाहिए यह कथा

आज है मधुश्रावणी व्रत, जरूर सुनना चाहिए यह कथा
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आज 23 जुलाई है और यह महीना सावन का महीना चल रहा है. आप सभी को हम यह भी बता दें कि सावन के महीने में शुक्ल तृतीया तिथि को सुहाग का पर्व हरियाली तीज और मधुश्रावणी पर्व मनाते हैं. जी हाँ, आज मधुश्रावणी का मुख्य पर्व है और यह बिहार के मिथिला क्षेत्र का सबसे प्रचलित त्योहार है. ऐसे में आप जानते ही होंगे सुहागन स्त्रियां इस व्रत को बहुत महत्वपूर्ण मानती है और इस व्रत के प्रति उनकी गहरी आस्था रखती हैं. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं मधुश्रावणी व्रत कथा. जो आज जरूर सुननी चाहिए.

कथा- राजा श्रीकर के यहां कन्या का जन्म हुआ तो राजा ने पंडितों को बुलवाकर उसकी कुंडली देखी. पंडितों ने बताया कि कन्या की कुंडली में कुछ दोष हैं जिससे इन्हें सौतन के तालाब में मिट्टी ढोना पड़ेगा. राजा इस बात से दुखी हुए और कुछ समय बीतने पर परलोक सिधार गए. इसके बाद राजा श्रीकर के पुत्र चंद्रकर राजा हुए. बहन से स्नेह के कारण वह नहीं चाहते थे कि बहन को सौतन के दबाव में रहना पड़े. चंद्रकर ने एक घने वन में सुरंग बनवा दिया जिसमें एक दासी के साथ राजकुमारी के रहने की व्यवस्था करवा दी ताकि किसी पुरुष से इनकी मुलाकात ना हो. लेकिन भाग्य को तो कुछ और ही मंजूर था. एक दिन सुवर्ण नाम के राजा उस वन में आए और शिकार खेलते हुए उस सुरंग के पास आ गए. राजा को प्यास भी खूब लगी थी इसलिए वन में पानी की तलाश में थे. अचानक राजा की नजर चींटियों पर गई जो मुंह में चावल का दाना लिए कतार में चल रही थीं.

राजा ने चींटियों का पीछा करना शुरू किया तो एक सुरंग के अंदर पहुंच गए. यहां राजकुमारी से राजा सुवर्ण की मुलाकात हुई और दोनों ने विवाह कर लिया. कुछ समय तक दोनों सुरंग में ही साथ रहे. राजा को कुछ दिनों बाद राज्य की याद सताने लगी तो उन्होंने राजकुमारी से जाने की आज्ञा मांगी. राजकुमारी ने कहा कि सावन मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मधुश्रावणी का पर्व होता है. उस दिन नवविवाहित कन्याएं ससुराल से आया हुआ अन्न खाती हैं और ससुराल से आए वस्त्र ही धारण करती हैं. इसलिए मधुश्रावणी से पहले इन्हें भेज दीजिएगा. राजा ने इस बात को स्वीकार कर लिया और जल्दी ही साथ ले जाने का वादा करते हुए अपनी राजधानी लौट गए. राजा ने नगर के प्रमुख वस्त्र बनाने वाले को बुलवाया और सुंदर सी चुनरी बनाने का आदेश दिया. यह बात राजा की पहली पत्नी को पता चला तो उसने वस्त्र बनाने वाले को स्वर्ण का लालच देकर चुनरी पर छाती लात, झोंटा हाथ लिखने का आदेश दिया. इसका मतलब यह था कि तुम्हारी सौतन तुम्हारी छाती पर लाती मारेगी और बाल पकड़कर खींचेगी. वस्त्र बनाने वाले ने चुनारी को ऐसा लपेट कर दिया कि राजा यह समझ नहीं पाए कि इस पर कुछ लिखा भी है. राजा ने समय आने पर चुनरी को एक कौए को पहुंचाने के लिए दिया. पौराणिक कथाओं में कौए को भी संदेश वाहक के रूप में बताया गया है. कौआ वस्त्र लेकर जा रहा थे लेकिन उसकी दृष्टि और भोज पर गई जिसे देखर कौआ सबकुछ भूल गया और चुनरी को छोड़कर जूठन खाने लग गया. मधुश्रावणी के दिन वस्त्र और अन्न नहीं पहुंचने से राजकुमारी नाराज हो गईं. राजकुमारी ने सफेद फूल और सफेद ही चंदन लेकर माता पार्वती की पूजा की और देवी से विनती करते हुए बोली कि जिस दिन राजा से उनकी भेंट हो उनकी आवाज चली जाए.

दूसरी ओर राजकुमारी के भाई चंद्रकर को जब बहन के विवाह की बात पता चली तो वह नाराज हो गया और बहन को खाने-पीने की चीजें भेजना बंद कर दिया. ऐसे में राजकुमारी और उनकी दासी को कई दिनों तक भूखा ही रहना पड़ा. इस बीच एक दिन पता चला की पास में तालाब खोदने का काम चल रहा है तो राजकुमारी अपनी दासी के साथ तालाब पर मिट्टी उठाने चल गई ताकि गुजरे के लिए धन मिल जाए. संयोग की बात है कि उस दिन राजा सवर्ण भी वहां तालाब पर आए हुए थे क्योंकि राजा की पहली पत्नी उस तालाब को खुदवा रही थी. राजा ने राजकुमारी को पहचान लिया और अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी. राजा अपने साथ राजकुमारी को लेकर महल चले आए और राजकुमारी को रानी का स्थान दिलाया. लेकिन राजकुमारी अब बोल नहीं सकती थी. राजा को इसका कारण दासी से पता चला तो उन्होंने ने बताया कि उन्होंने तो चुनरी भेजी थी.

राजा ने जब घटना की जांच करवाई तो सारी बातें सामने आ गई और तब पता चला कि यह सारी उलझन कौए की वजह से हुई है. राजा ने चुनरी भी तलाश करवा ली जिस पर बड़ी रानी का भेजा संदेश लिखा था. राजा इस बात से बड़ी रानी पर नाराज हुए और उन्हें मृत्युदंड दिया. अगले वर्ष जब मधुश्रावणी आई तो राजकुमारी ने लाल फूलों और लाल वस्त्र से माता पार्वती का पूजन किया और आवाज लौटाने की प्रार्थना की जिससे राजकुमारी की वाणी लौट आई. इसके बाद राजा स्वर्ण और राजकुमारी वर्षों तक वैवाहिक जीवन का सुख भोगते रहे.

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