मध्यप्रदेश चुनाव: अपनों को टिकट बांटकर मुसीबत में फंसी भाजपा और कांग्रेस

मध्यप्रदेश चुनाव: अपनों को टिकट बांटकर मुसीबत में फंसी भाजपा और कांग्रेस
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भोपाल: मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव नज़दीक आते जा रहे हैं और राजनितिक दलों की परेशानियां ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही हैं. अब राजनितिक दल आदिवासी बहुल झाबुआ विधानसभा क्षेत्र में टिकट बंटवारे को लेकर मुसीबत में पड़ गए हैं. दरअसल, कांग्रेस और भाजपा के बड़े नेताओं ने यहां अपनों को टिकट बांटे. अब दोनों दलों के नेताओं के लिए अपने-अपने उम्मीदवार को जीत दिलाना प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है, इसके चलते दोनों ही दलों के बड़े नेताओं ने अब तक क्षेत्र में दर्जनों सभाएं और रैलियां कर चुके हैं.

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आदिवासी बहुल जिलों की विधानसभा सीटों पर दोबारा जीत दर्ज करने की रणनीति पर भाजपा ने रतलाम-झाबुआ संसदीय उपचुनाव में मिली हार के बाद से ही काम प्रारम्भ कर दिया था, वहीं कांग्रेस में टिकट को लेकर स्थिति महीनों पहले से ही पूरी तरह स्पष्ट थी. यही वजह रही कि अक्टूबर महीने से ही इस विधान सभा क्षेत्र में बड़े नेताओं का आगमन शुरू हो गया था. कांग्रेस के लिए चिंता का विषय यह है कि क्षेत्रीय सांसद और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने अपने बेटे डॉ. विक्रांत भूरिया को झाबुआ से टिकट दिलवा दिया. इससे नाराज पूर्व विधायक जेवियर मेड़ा बागी बनकर निर्दलीय ही चुनावी मैदान में उतर आए. जेवियर खुद को सिंधिया का करीबी बताते रहे हैं, गांवों में भी लोग यही मानते है.  

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वहीं दूसरी ओर भाजपा अपने प्रत्याशी गुमानसिंह डामोर को स्थानीय नेता साबित करने की कोशिश कर रही है. संघ कोटे और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा की पहल पर उन्हें टिकट दिया गया था. अब विपक्षी दल बाहरी होने का आरोप लगाकर गुमान सिंह और भाजपा पर हमले कर रहे हैं. इसके जवाब में भाजपा नेता और प्रत्याशी दोनों लोगों के बीच जाकर स्थानीय भीली बोली में वार्तालाप कर रहे हैं. गुमानसिंह लोगों को बता रहे हैं कि मेरा घर यहीं है, लेकिन कम समय मिलने से पहचान नहीं बन सकी, पार्टी तो भरोसे की है ही. इनके अलावा पूर्व विधायक शांतिलाल बिलवाल ने भी टिकट नहीं दिए जाने से नाराज होकर निर्दलीय नामांकन भर दिया था लेकिन बड़े नेताओं की समझाइश के बाद उन्होंने नाम वापिस ले लिया.

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