इंदौर: मध्य प्रदेश में इसी साल 28 नवंबर को विधान सभा चुनाव के लिए मतदान होना है. ऐसे में तमाम राजनितिक दल, विशेषकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस अपने -अपने उम्मीदवारों का प्रचार करने में लगे हुए हैं. कांग्रेस जहां वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की 15 साल की नाकामियों का ढिंढोरा पीटते हुए जनता को बीजेपी के खिलाफ भड़का रही है, वहीं भाजपा के जन आशीर्वाद यात्रा और पीएम मोदी के नाम का सहारा लेकर अपना राज्य कायम रखने की जुगत में है. लेकिन अगर मध्यप्रदेश के पिछले विधान सभा चुनावों की बात करें तो 2013 के चुनावों की तुलना में 2008 विधान सभा चुनावों में बीजेपी-कांग्रेस में कड़ी टक्कर हुई थी.
बसपा और भारतीय जनशक्ति पार्टी ने तोड़ा बीजेपी का वोट बैंक
हालांकि 2008 के चुनावों में कांग्रेस को बीजेपी से आधी सीटें ही मिली ही, लेकिन वोट प्रतिशत में ज्यादा अंतर नहीं था. 2008 में बीजेपी को जहां 37.64 प्रतिशत वोट मिले थे, वहीं कांग्रेस 32.39 वोटों के साथ दूसरे नंबर पर थी. अगर सीटों की बात करें तो बीजेपी ने 143 और कांग्रेस ने 71 सीटों पर कब्ज़ा किया था. 2008 के चुनावों में भाजपा के वोट बैंक में मायावती की बसपा और उमा भारती की भारतीय जनशक्ति पार्टी ने भारी सेंध मारी थी, जिन्होंने लगभग हर सीट पर उम्मीदवार उतारे थे, जिस कारण भाजपा को पिछले चुनावों के मुकाबले 30 सीटों का नुकसान हुआ था, जबकि कांग्रेस को 33 सीटों का फायदा हुआ था.
ऐसी सीटें जहां जीत का अंतर रहा था बेहद कम
2008 के चुनावों में कुछ ऐसी सीटें रही थी, जहां जीत का अंतर बेहद कम रहा था, धार विधानसभा से वरिष्ठ भाजपा नेता एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री विक्रम वर्मा की पत्नी नीना वर्मा मात्र एक वोट से विजयी हुई थी, हालांकि कांग्रेस प्रत्याशी बालमुकुंद गौतम ने लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद विधायक पद प्राप्त कर लिया था और नीना वर्मा का निर्वाचन रद्द कर दिया गया था. जयंत मलैया ने भी कांग्रेस उम्मीदवार पर मात्र 130 वोटों से जीत दर्ज की थी. कांग्रेस सांसद सज्जन सिंह वर्मा को अपने ही गढ़ सोनकच्छ में कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ा था, उन्हें 191 वोटों से जीत मिली थी. हालांकि सीएम शिवराज ने बुधनी में अपना जादू बरक़रार रखते हुए 41000 वोटों के बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी.
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