मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने हाल ही में दिए अपने फैसले में कहा है कि शवों को दफनाने के लिए मंदिर की जमीन को कब्रिस्तान बनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। जी दरअसल हाईकोर्ट ने हाल ही में यह कहा कि, 'मृत लोगों को भी सम्मान सहित दफनाने या दाह संस्कार करने का अधिकार है, लेकिन मंदिर की भूमि में इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।' जी दरअसल जस्टिस आर महादेवन और जे सत्य नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने कहा, 'मंदिर की जमीन हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग के अधीन आती है और यह मंदिर की संपत्ति की कस्टोडियन है।'
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इसी के साथ कोर्ट ने बंदोबस्ती विभाग को अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया। आपको बता दें कि तमिलनाडु के तेरुचिंदुर में स्थित अरुलमिगु सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर के रास्ते में टोपी बेचने वाले एसपी सत्यानारायण ने साल 2018 में एक याचिका दी थी। जी हाँ और अपनी याचिका में उन्होंने कहा था कि त्योहारों के मौसम में बड़ी संख्या श्रद्धालु मंदिर में आते हैं, हालाँकि उन्हें आराम करने के लिए आसपास जगह नहीं बची है। वहीं सत्यनारायण ने याचिका में कहा कि मंदिर के पास लगभग 30 एकड़ जमीन है, जिसका इस्तेमाल पहले आने वाले श्रद्धालुओं की गाड़ियों को पार्किंग करने और उनके आराम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। हालाँकि अब इसका इस्तेमाल शवों को दफनाने और रात में अवैध गतिविधियों के लिए किया जाता है।
वहीं इस मामले में जिले के कलेक्टर को और मंदिर प्रशासन को साल 2017 में कार्रवाई करने के लिए आग्रह किया गया था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। ऐसे में कोर्ट ने कहा कि राजस्व विभाग द्वारा यह जानते हुए कि जमीन मंदिर की है और वहाँ शवों को दफनाया जा रहा है, कोई कार्रवाई नहीं करना अक्षम्य है। आपको बता दें कि लाइव लॉ के अनुसार, कोर्ट ने मंदिर की जमीन को तीन महीने में अतिक्रमण मुक्त करने का आदेश दिया। इसी के साथ ही कोर्ट ने जिले के कलेक्टर को शवों को दफनाने के लिए वैकल्पिक जमीन उपलब्ध कराने के लिए भी कहा।
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