चेन्नई: मंदिरों में पुजारियों की नियुक्ति को लेकर मद्रास उच्च न्यायालय ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. अदालत ने कहा है कि मंदिर में पुजारियों की नियुक्ति में जाति का कोई रोल नहीं होता है. इसमें सिर्फ ये देखा जाना चाहिए कि व्यक्ति कितना योग्य है. वो अपनी काम में भली-भांति परांगत हो, प्रशिक्षित हो और आवश्यकता के हिसाब से पूजा करने के लिए योग्य हो. उच्च न्यायालय ने साफ़ शब्दों में यह कहा है कि यदि कोई भी व्यक्ति इन सभी मानदंडों को पूरा करता है, तो जाति की इसमें कोई भूमिका नहीं होगी.
रिपोर्ट के अनुसार, सोमवार (26 जून) को वर्ष 2018 की एक याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए जस्टिस एन आनंद वेंकटेश ने यह टिप्पणी की है. इस मामले जाति को आधार बताते हुए पुजारी की नियुक्ति को लेकर एक विज्ञापन को चुनौती दी गई थी. हालांकि, अदालत ने मानने से मना कर दिया. मुथु सुब्रमण्यम गुरुक्कल की ओर से तमिलनाडु के हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग के 2018 में श्री सुगवनेश्वर स्वामी मंदिर से पुजारियों की भर्ती के लिए निकाले गए एक इश्तेहार को चुनौती दी गई थी.
कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया था कि उनके वंशानुगत अधिकारों का उल्लंघन करता है. सुब्रमण्यम ने अपने दादा से स्थानिकम का पद ग्रहण किया था. सुनवाई के दौरान जज ने वर्ष 2016 के अखिल भारतीय आदि शैव शिवचारिगल सेवा संगम बनाम तमिलनाडु सरकार मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का हवाला दिया. इस मामले में शीर्ष अदालत ने माना था कि मंदिर के पुजारी की नियुक्ति धर्मनिरपेक्ष कार्य है, न कि वंशानुगत अधिकारों से संबंधित है. शीर्ष अदालत ने यह भी माना था कि अर्चक की ओर से की जाने वाली धार्मिक सेवा धर्मनिरपेक्षता का हिस्सा है. मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसला देते हुए याचिकाकर्ता को नियुक्ति होने तक पूजा करने की भी अनुमति दे दी है.
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