केंद्र सरकार के खिलाफ मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस सभी विपक्षी दलों को एक साथ लाने की कवायद में जुटी है। सभी विपक्षी दलों का यह महागठबंधन सरकार को उखाड़ फेंकने की ताकत रखता है और कांग्रेस चाहती है कि यह महागठबंधन चुनावों तक एक साथ रहे, लेकिन उसकी यह मंशा पूरी होते नहीं दिख रही है। 2019 के आम चुनावों से पहले महागठबंधन में बिखराव नजर आ रहा है और अगर ऐसा होता है, तो यह केंद्र में सत्ताधीन भाजपा के लिए बहुत बड़ी जीत साबित हो सकती है।
महागठबंधन के कई दल पीएम राग अलापने लगे हैं। अभी कुछ दिन पहले ही कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अगले चुनाव में पीएम पद का उम्मीदवार बनाने के फैसले की खबर बाहर आते ही सबसे पहले बिहार से विरोध के स्वर फूटे। राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि अकेले राहुल गांधी ही अगले चुनाव में पीएम पद के उम्मीदवार नहीं है। कई अन्य नेताओं ने भी धीमे स्वर में राहुल गांधी की उम्मीदवारी का विरोध किया। इसके बाद कांग्रेस ने बयान दिया कि 2019 में मोदी को हटाने वह किसी बाहरी पार्टी के उम्मीदवार को भी समर्थन दे सकती है। कांग्रेस का यह नरम रुख बताता है कि वह महागठबंधन में किसी तरह की तकरार नहीं चाहती। लेकिन महागठबंधन के दल कांग्रेस की इस मंशा को कामयाब होने देंगे इसमें शक है?
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दरअसल, तेजस्वी के बाद बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने भी पीएम पद को लेकर अपनी उम्मीदवारी के संकेत दिए हैं, तो इस मुद्दे को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जम्मू एंड कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला से मुलाकात की और इस मुलाकात के बाद उमर ने ममता की उम्मीदवारी का समर्थन किया। हालांकि ममता बनर्जी ने कहा कि 2019 के चुनाव से पहले पीएम पद की घोषणा नहीं करनी चाहिए। इससे लगता है कि वह भी पीएम की रेस में खुद को रखती हैं।
महागठबंधन का निर्माण मोदी सरकार के लिए चुनौती के तौर पर किया गया था। अगर यह सभी दल एक साथ रहे, तो आगामी चुनाव में पीएम मोदी और बीजेपी को सत्ता से उखाड़ सकते हैं, लेकिन जो हालात इस समय बन रहे हैं, उसे देखकर तो यही कहा जा सकता है कि मोदी को अगर हठाना है, तो सबसे पहले महागठबंधन में गठबंधन करना होगा।
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