16 फरवरी को है माघ पूर्णिमा, जानिए व्रत की पौराणिक कथा

16 फरवरी को है माघ पूर्णिमा, जानिए व्रत की पौराणिक कथा
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आने वाली 16 फरवरी 2022 को माघ पूर्णिमा है। आप सभी को बता दें कि यह माघ मास का अंतिम दिन होता है इसके बाद फाल्गुन मास लगने वाला है। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं क्या है माघ पूर्णिमा व्रत की पौराणिक कथा।

माघ पूर्णिमा व्रत की पौराणिक कथा- पौराणिक कथा के मुताबिक नर्मदा नदी के तट पर शुभव्रत नामक विद्वान ब्राह्मण रहते थे, लेकिन वे काफी लालची थे। इनका लक्ष्य किसी भी तरह धन कमाना था और ऐसा करते-करते ये समय से पूर्व ही वृद्ध दिखने लगे और कई बीमारियों की चपेट में आ गए। इस बीच उन्हें अंर्तज्ञान हुआ कि उन्होंने पूरा जीवन तो धन कमाने में बीता दिया, अब जीवन का उद्धार कैसे होगा। इसी क्रम में उन्हें माघ माह में स्नान का महत्व बताने वाला एक श्लोक याद आया। इसके बाद स्नान का संकल्प लेकर ब्राह्मण नर्मदा नदी में स्थान करने लगे। करीब 9 दिनों तक स्नान के बाद उऩकी तबियत ज्यादा खराब हो गई और मृत्यु का समय आ गया। वे सोच रहे थे कि जीवन में कोई सत्कार्य न करने के कारण उन्हें नरक का दुख भोगना होगा, लेकिन वास्तव में मात्र 9 दिनों तक माघ मास में स्नान के कारण उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।

पूर्णिमा व्रत की कथा : कांतिका नगर में धनेश्वर नाम के ब्राह्मण अपना जीवन भिक्षा मांगकर अपना जीवन निर्वाह था। उसकी कोई संतान नहीं थी। एक दिन उसकी पत्नी नगर में भिक्षा मांगने गई, परंतु सभी ने उसे बांझ कहकर भिक्षा देने से इनकार कर दिया। फिर किसी ने ब्राह्मण दंपत्ति को 16 दिन तक मां काली की पूजा करने को कहा। उन्होंने विधिवत पूजा करके आराधना की और तब उनकी आराधना से प्रसन्न होकर मां काली ने दोनों को संतान प्राप्ति का वरदान दिया और कहा कि अपने सामर्थ्य के अनुसार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम दीपक जलाओ। इस तरह हर पूर्णिमा के दिन तक दीपक बढ़ाते जाना है जब तक कम से कम 32 दीपक न हो जाएं। इसके बाद ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को पूजा के लिए पेड़ से आम का कच्चा फल तोड़कर दिया और उसकी पत्नी ने पूजा की और फलस्वरूप वह गर्भवती हो गई। एक पुत्र ने जन्म लिया, जिसका नाम देवदास रखा। देवदास जब बड़ा हुआ तो उसे अपने मामा के साथ पढ़ने के लिए काशी भेजा। काशी में धोखे से देवदास का विवाह हो गया। देवदास ने कहा कि वह अल्पायु है परंतु फिर भी जबरन उसका विवाह करवा दिया गया। कुछ समय बाद काल उसके प्राण लेने आया लेकिन ब्राह्मण दंपत्ति ने पूर्णिमा का व्रत रखा था, इसलिए काल उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाया। तभी से कहा जाता है कि पूर्णिमा के दिन व्रत करने से संकट से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं।

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