हम सभी इस बात से वाकिफ हैं कि इस समय देश में कोरोना वायरस की वजह से लॉकडाउन चल रहा है. इसी की वजह से लोग अपने घरों में बंद हैं और सरकार ने लोगों के मनोरंजन के लिए दूरदर्शन पर पुराने धारावाहिक का प्रसारण फिर से शुरू कर दिया है. इनमे रामायण और महाभारत शामिल है. ऐसे में इन दिनों महाभारत में द्रौपदी के चीरहरण का प्रसंग चल रहा है. आप सभी ने वैसे तो महाभारत की कई कथाएं सुनी होंगी और धृतराष्ट्र और गांधारी के 100पुत्रों यानी कौरवों में आपने ज्यादातर दुर्योधन और दुशासन का ही जिक्र सुना होगा. वहीं आप सभी ने शायद ही यह सुना होगा कि कौरवों में से एक कौरव ऐसा भी था जिसने द्रौपदी के चीर हरण का विरोध किया था. जी हाँ, तो आइए जानते हैं पूरी कथा.
कथा - महाभारत के अनुसार द्रौपदी के चीरहरण के समय कौरवों के भाई जिसका नाम विकर्ण था. उसने चीरहरण का पूरा विरोध किया था. मान्यता है कि उसने अपने भाई दुर्योधन और दुशानसन के कृत्य की निंदा की थी. विकर्ण ने पूरी घटना का विरोध किया था. महाभारत में अकेला विकर्ण ही वो कौरव था जिसने चीरहरण की आलोचना की थी. आप सभी को बता दें कि विकर्ण ही चीरहरण के विरोध में था और भरी महफिल में जब द्रौपदी का अपमान हुआ उस समय उसने सभी के सामने इसका विरोध जताया था. सभा में धृतराष्ट्र, भीष्म, द्रोणाचार्य जैसे महारथी बैठे थे.
इस सभा में सिर्फ विकर्ण ही वो कौरव था जिसने इस चीरहरण का विरोध किया. जी दरअसल भाई दुर्योधन का विरोधी होने के बावजूद विकर्ण ने भाई का धर्म निभाते हुए कौरव सेना का साथ दिया था. वहीं युद्ध के समय जब विकर्ण का सामना हुआ तो भीम ने कहा कि वह उनसे लड़ना नहीं चाहते. विकर्ण ने कहा कि वह जानते हैं कि कौरवों की हार होनी है और वह अपना कर्त्तव्य निभाने के लिए मजबूर हैं. उस समय विकर्ण ने कहा कि द्रौपदी के अपमान के समय सभा में जो उन्हें करना चाहिए था वो उन्होंने किया और यहां रणभूमि में जो उन्हें करना चाहिए, वह कर रहे हैं. वह अपना धर्म निभा रहे हैं. इसके बाद भीम और विकर्ण में युद्ध हुआ जिसमें भीम विजयी रहे. भीम को मजबूरन विकर्ण का वध करना पड़ा.
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