चौसर के खेल में आखिरी दांव हारने के बाद पांडवों ने वनवास जाने की तैयारी कर ली. इसके साथ ही कुंती अपने पुत्रों और पुत्रवधु द्रौपदी को लेकर कुरुराज्य सभा गंगा पुत्र भीष्म, कुलगुरु कृपाचार्य,आचार्य द्रोण, अपने जेष्ठ श्री और हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र से वन की ओर प्रस्थान करने की आज्ञा मांगने जाती हैं. वहीं कुंती चाहती तो बिना आज्ञा लिए अपने परिवार के साथ वनवास के लिए प्रस्थान करती परन्तु वो राजयसभा में सभी को ये जताने आती है जो पांडवों के साथ हुआ उससे हस्तिनापुर का सिंघासन अपमानित हुआ है. वहीं राज्यसभा में सिर्फ दुर्योधन और शकुनि ही प्रसन्न हैं बाकी सब नज़रें झुका कर कुंती और पांडवों की प्रतीक्षा कर रहे हैं. कुंती अपने पुत्रों और द्रौपदी के साथ राज्यसभा में वनवास जाने से पहले सबकी आज्ञा लेने आती है. इसके साथ ही कुंती, द्रौपदी और पांडव साधारण वस्त्र पहने हुए हैं. राज्यसभा में कुंती की आवाज़ सुन धृतराष्ट्र कुंती से प्रश्न करते हैं. वहीं इसपर कुंती कहती है कि "जिस राजभवन में उसकी कुलवधू का वस्त्रहरण हुआ उस राजभवन में रहना एक क्षत्राणी को शोभा नहीं देता."तभी विदुर आगे आता है और अपनी भाभी कुंती से निवेदन करते हैं कि वो उसकी कुटिया में रहकर उसे सम्मानित करें.
आपकी जानकारी के लिए बता दें की वो युधिष्टर को भी समझाते हैं और युधिष्टर काकाश्री की बात मानकर अपने, अपने भाइयों और द्रौपदी की तरफ से सभी को प्रणाम करके वन जाने की आज्ञा लेता है. वहीं कुंती रोने लगती हैं, अर्जुन मां कुंती को वचन देता उपरान्त हम अवश्य लौटेंगे. वहीं पांचों पांडव और द्रौपदी, कुंती का आशीर्वाद लेते हैं और वो वन की ओर प्रस्थान करते हैं. इसके साथ ही समय चक्र चलने लगता है पांचों पांडव और द्रौपदी वन-वन भटकते हैं, सभी मिलकर अपने लिए कुटिया बनाते हैं. वहां हस्तिनापुर में भीष्म ने अपने कक्ष में अंधेरा कर रखा है, तभी वहां विदुर आते हैं और भीष्म उनसे प्रार्थना करते हैं पुरे हस्तिनापुर में जो अन्धकार आने वाला है उसे रोक लो. विदुर विवश होकर कहता है उसने प्रयत्न तो बहुत किया पर असफल हो गया है.
इसके साथ ही विदुर की बातें सुनकर भीष्म उसे धृतराष्ट्र के पास ये सन्देश लेकर भेजते हैं कि पांडवों को 13 दिन हो गए हैं वनवास गए और कुछ परिस्तिथियों में 13 दिनों को 13 वर्ष गिना जा सकता है. अगर दुर्योधन के कहने पर धृतराष्ट्र ना मानें तो भीष्म विदुर को हठ करने को कहते हैं. इसके साथ ही भीष्म की आज्ञा लेकर विदुर धृतराष्ट्र के पास आते हैं और कहते हैं कि," पांडव वनवास के आज 13 दिन हो गए हैं, और शास्त्रों के अनुसार विशेष स्तिथि में 13 दिन 13 वर्ष के बराबर माने जाते हैं. इसलिए महाराज यदि आप किसी दूत को भेजकर उन्हें यहां वापस बुलवा लेंवहीं ये सुनकर धृतराष्ट्र को गुस्सा आता है क्योंकि उन्हें डर है कि उनके वापस आने पर दुर्योधन आत्महत्या कर लेगा. इसके साथ ही क्रोध में आकर धृतराष्ट्र को विदुर ये तक कह देते हैं की अगर तुम्हें पांडव इतने अच्छे लगते हैं तो तुम भी जाओ उनके पास. ये सुनकर विदुर का दिल टूट गया, गांधारी धृतराष्ट को समझाने की कोशिश भी करती है परन्तु वो युद्ध के डर से तैयार नहीं होते. विदुर धृतराष्ट्र की आज्ञा लिए बिना ही वहां से चले जाते हैं.
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