संत सियाराम बाबा की चिता में दिखे 'महादेव', दर्शन कर मंत्रमुग्ध हुए भक्त

संत सियाराम बाबा की चिता में दिखे 'महादेव', दर्शन कर मंत्रमुग्ध हुए भक्त
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खरगोन: मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के भट्टयान बुजुर्ग आश्रम में निवास करने वाले प्रसिद्ध संत सियाराम बाबा ने मोक्षदा एकादशी के शुभ दिन (11 दिसंबर 2024) को अपने नश्वर शरीर को त्याग दिया। उनका अंतिम संस्कार खरगोन जिले में नर्मदा नदी के तट पर स्थित तेली भट्याण आश्रम के पास संपन्न हुआ। इस अवसर पर लाखों भक्त, उनके अनुयायी, और प्रदेश के सीएम मोहन यादव ने उनके अंतिम दर्शन किए। सीएम ने सियाराम बाबा के निधन को समाज और संत समुदाय के लिए एक अपूरणीय क्षति बताया तथा उनकी समाधि को तीर्थ स्थल में बदलने का ऐलान किया।

अंतिम समय और बीमारी
खरगोन जिले के पुलिस अधीक्षक धर्मराज मीणा ने बताया कि संत सियाराम बाबा ने बुधवार प्रातः लगभग 6:10 बजे अपने आश्रम में अंतिम सांस ली। बाबा बीते कुछ दिनों से निमोनिया से जूझ रहे थे। उनके निधन की खबर सुनकर न सिर्फ स्थानीय बल्कि देशभर के श्रद्धालु गमगीन हो गए। मध्य प्रदेश के सीएम मोहन यादव, पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने भी इस महान संत के निधन पर गहरा शोक जताया।

संत सियाराम बाबा की चिता में हुए महादेव के दर्शन 
संत सियाराम बाबा की चिता से जुड़ी एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। तस्वीर में ऐसा प्रतीत होता है मानो बाबा ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में भी महादेव के दर्शन कराने का अद्वितीय अनुभव दिया हो। यह घटना उनके अनुयायियों के लिए बेहद भावुक क्षण थी तथा इसे उनकी आध्यात्मिक शक्ति और महानता का प्रतीक माना जा रहा है। कई भक्तों का कहना है कि यह तस्वीर यह दर्शाती है कि बाबा ने अपने जीवन की आखिरी सांस तक महादेव की भक्ति में लीन रहकर अपनी साधना को सार्थक किया।

दान और जनसेवा में योगदान
सियाराम बाबा जनसेवा एवं समाज कल्याण के लिए समर्पित थे। उन्होंने जीवनभर भक्तों से सिर्फ 10 रुपये का दान स्वीकार किया। इस छोटी-छोटी धनराशि को उन्होंने नर्मदा घाटों के जीर्णोद्धार, धार्मिक संस्थानों के विकास, और मंदिर निर्माण के कार्यों में लगाया। बाबा ने नागलवाड़ी भीलट मंदिर के लिए 2.57 करोड़ रुपये और 2 लाख रुपये का चांदी का झूला दान किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए 2.50 लाख रुपये का योगदान दिया। भट्याण ससाबड़ रोड पर 5 लाख रुपये की लागत से यात्री प्रतीक्षालय भी बनवाया।

जीवन का प्रारंभ और वैराग्य
सियाराम बाबा का जन्म गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में हुआ। बचपन में ही उनका परिवार मुंबई आ गया, जहां उन्होंने मैट्रिक तक की पढ़ाई पूरी की। उनके परिवार में माता-पिता के अतिरिक्त 2 बहनें और एक भाई थे। 17 वर्ष की उम्र में उन्होंने सांसारिक जीवन का त्याग कर वैराग्य अपना लिया। पांच वर्षों तक उन्होंने भारत के विभिन्न धार्मिक और आध्यात्मिक स्थलों की यात्रा की। 25 वर्ष की आयु में बाबा खरगोन जिले के कसरावद क्षेत्र के तेली भट्याण गांव पहुंचे। उन्होंने अपने शिष्यों को बताया था कि वे पहली बार एकादशी के दिन इस स्थान पर आए थे, तथा संयोगवश एकादशी के दिन ही उन्होंने अपनी देह का परित्याग किया।

सादगी और कठोर तपस्या
सियाराम बाबा का जीवन सादगी और तपस्या का आदर्श था। वे मात्र लंगोट में रहते थे, अपना भोजन स्वयं पकाते थे तथा अपने सभी दैनिक कार्य स्वयं करते थे। उन्होंने 12 वर्षों तक अपने आश्रम में एक पैर पर खड़े होकर मौन साधना की। इस के चलते वे सिर्फ नीम की पत्तियां और बेलपत्र का सेवन करते थे।

सियाराम बाबा का जीवन त्याग, सेवा एवं साधना का प्रतीक था। उनके द्वारा किए गए कार्य समाज को सिखाते हैं कि सादगी और समर्पण से महान उपलब्धियां संभव हैं। उनकी आध्यात्मिक शिक्षाएं और जीवनशैली आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी। 

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