मुंबईः कभी महाराष्ट्र की सियासत में दमदार किरदार के तौर पर देखे जाने वाले मनसे प्रमुख राज ठाकरे इन दिनों राजनीतिक बदहाली से गुजर रहे हैं। एक समय उन्हें बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी समझा जाता था। मदर समय की करवट ने उन्हें रसातल में पहुंचा दिया। राज ठाकरे की राजनीति उत्तर भारतीय विरोध के आसपास घुमती है। मगर इन दिनों उनके तेवर ढ़ीले पड़े हुए हैं। पिछले 10 साल से उत्तर भारतीयों के खिलाफ जहर उगलने वाले राज ठाकरे इस बार खुलकर उत्तर भारतीयों के खिलाफ बोलने से बचते दिखाई दे रहे हैं।
इस चुनाव में वह सिर्फ विपक्ष का नेता बनाने के लिए जरूरी सीट पाना चाहते हैं। राज ठाकरे ने अब तक महाराष्ट्र में तीन जनसभाएं की हैं लेकिन उन जनसभाओं में उत्तर भारतीयों को निशाना बनाने से परहेज किया है। मुंबई के घाटकोपर में एक जनसभा में उत्तर भारतीयों को कोसने के बाजय सिर्फ इतना कहा कि उत्तर भारत से रोज 48 ट्रेन आती हैं इससे भूमिपुत्र परेशानी झेल रहा है। लेकिन उन्होंने स्पष्ट तौर पर यूपी और बिहार के लोगों का नाम नहीं लिया और न ही उन्हें निशाने पर लिया।
इस बार विधानसभा चुनाव में मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे अपनी चुनावी रैलियों में जनता से यही कह रहे हैं कि मनसे को इतनी सीटो पर जिता दें जिससे कि विपक्ष के नेता पद उनकी पार्टी को मिल सके। दरअसल राज ठाकरे को अपनी सीमित राजनीतिक ताकत का अहसास हो गया है। साल 2014 के विधानसभा चुनाव में मात्र एक सीट पर जीत मिलने के बाद मनसे के दुर्दिन शुरू हो गए। वह भी पुणे के पास जिस जुन्नर सीट से मनसे के शरद सोनावणे ने जीत हासिल की थी उन्होंने मनसे को बाय-बाय कह शिवसेना का शिवबंधन बांध लिया है। शिवसेना ने शरद को जुन्नर सीट से उम्मीदवारी भी दे दी है। इस तरह उनका एकमात्र विधायक भी साथ छोड़ चुका है।
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