गुरु पूर्णिमा पर पढ़े महर्षि वेद व्यास के अनमोल विचार

गुरु पूर्णिमा पर पढ़े महर्षि वेद व्यास के अनमोल विचार
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भारतीय संस्कृति में गुरु को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। आप सभी को बता दें कि महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास (Krishna dwaipayana Vyas, Maharshi Vedvyas) हमारे आदिगुरु है। जी हाँ और गुरु पूर्णिमा पर्व महर्षि वेद व्यास को प्रथम गुरु मानते हुए उनके सम्मान में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि आषाढ़ पूर्णिमा को महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था और वह चारों वेदों के प्रथम व्याख्याता थे, जिन्होंने हमें वेदों का ज्ञान दिया है। आप सभी को बता दें कि महर्षि वेद व्यास के उपदेश और उनके अनमोल विचार हर मनुष्य के जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। आज हम आपको वही उपदेश और विचार बताने जा रहे हैं

महर्षि वेद व्यास के 20 अनमोल कथन-

1. अमृत और मृत्यु दोनों इस शरीर में ही स्थित हैं। मनुष्य मोह से मृत्यु को और सत्य से अमृत को प्राप्त होता है।

2. जिसके मन में संशय भरा हुआ है, उसके लिए न यह लोक है, न परलोक है और न सुख ही है।

3. किसी के प्रति मन में क्रोध रखने की अपेक्षा उसे तत्काल प्रकट कर देना अधिक अच्छा है, जैसे पल में जल जाना देर तक सुलगने से अच्छा है।

4. अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, विद्वान पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता।

5. दूसरों के लिए भी वही चाहो जो तुम अपने लिए चाहते हो।

6. जो वेद और शास्त्र के ग्रंथों को याद रखने में तत्पर है किंतु उनके यथार्थ तत्व को नहीं समझता, उसका वह याद रखना व्यर्थ है।

7. जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं, क्षमा करता है, वह अपनी और क्रोध करने वाले की महा संकट से रक्षा करता है। वह दोनों का रोग दूर करने वाला चिकित्सक है।

8. जहां कृष्ण हैं, वहां धर्म है और जहां धर्म है, वहां जय है।

9. जो सज्जनता का अतिक्रमण करता है उसकी आयु, संपत्ति, यश, धर्म, पुण्य, आशीष, श्रेय नष्ट हो जाते हैं।

10. अत्यंत लोभी का धन तथा अधिक आसक्ति रखने वाले का काम- ये दोनों ही धर्म को हानि पहुंचाते हैं।

11. जिस मनुष्य की बुद्धि दुर्भावना से युक्त है तथा जिसने अपनी इंद्रियों को वश में नहीं रखा है, वह धर्म और अर्थ की बातों को सुनने की इच्छा होने पर भी उन्हें पूर्ण रूप से समझ नहीं सकता।

12. जो केवल दया से प्रेरित होकर सेवा करते हैं, उन्हें नि:संशय सुख की प्राप्ति होती है।

13. मन में संतोष होना स्वर्ग की प्राप्ति से भी बढ़कर है, संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। संतोष यदि मन में भली-भांति प्रतिष्ठित हो जाए तो उससे बढ़कर संसार में कुछ भी नहीं है।

14. दुख को दूर करने की एक ही अमोघ औषधि है- मन से दुखों की चिंता न करना।

15. क्षमा धर्म है, क्षमा यज्ञ है, क्षमा वेद है और क्षमा शास्त्र है। जो इस प्रकार जानता है, वह सब कुछ क्षमा करने योग्य हो जाता है।

16. अधिक बलवान तो वे ही होते हैं जिनके पास बुद्धिबल होता है। जिनमें केवल शारीरिक बल होता है, वे वास्तविक बलवान नहीं होते।

17. जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। पुन:-पुन: किया हुआ पुण्य बुद्धि को बढ़ाता है।

18. जैसे तेल समाप्त हो जाने पर दीपक बुझ जाता है, उसी प्रकार कर्म के क्षीण हो जाने पर देव भी नष्ट हो जाता है।

19. जो मनुष्य अपनी निंदा सह लेता है, उसने मानो सारे जगत पर विजय प्राप्त कर ली।

20. संसार में ऐसा कोई नहीं हुआ है, जो मनुष्य की आशाओं का पेट भर सके। पुरुष की आशा समुद्र के समान है, वह कभी भरती ही नहीं।

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