आप सभी जानते ही हैं कि हर साल आने वाली महाशिवरात्रि इस बार 21 फरवरी को है। ऐसे में आप सभी जानते ही होंगे महाशिवरात्रि का पर्व हिन्दी माह फल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है जो कि इस साल 21 फरवरी को है। ऐसे में पौराणिक कथाओं की माने तो, इस दिन मां पार्वती और शिव जी का विवाह हुआ था। कहा जाता है शिव साधना और सिद्धि के लिए यह त्योहार बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है और ज्योतिष शास्त्र में साधना के लिए तीन रात्रि विशेष मानी गई हैं। इनमें शरद पूर्णिमा को मोहरात्रि, दीपावली की कालरात्रि तथा महाशिवरात्रि को सिद्ध रात्रि कहा गया है। ऐसे में आज हम आपको उस स्तोत्र के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे पढ़कर आप शिव को खुश कर सकते हैं। जी दरअसल इस दिन पूरी श्रद्धा से रुद्राष्टक का जप करने मात्र से भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं और भक्त को त्वरित फल प्रदान करते हैं। आपको बता दें कि यह स्तोत्र इतनी सरल और बोधगम्य भाषा में लिखा गया है कि कुछ ही समय के पाठ से साधक इसके आसानी से कंठस्थ कर सकता है। तो आइए आज हम आपको बताते हैं श्री रुद्राष्टकम।
।।श्री रुद्राष्टकम।।
ॐ नमः शिवायः
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥
प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥
रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।
॥ इति श्रीगोस्वामीतुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥
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