कुछ समय पश्चात् में महाशिवरात्रि आने वाली है। महादेव को खुश करने के लिए अलग-अलग चीजों को चढ़ाते हैं। कई भक्त साप्ताहिक सोमवार का उपवास भी रखते हैं। सभी देवी-देवताओं में महादेव ही ऐसे भगवान हैं जो श्रद्धालुओं की भक्ति-पूजा से शीघ्र ही खुश हो जाते हैं। महादेव को आदि अनंत माना गया हैं। महादेव को खुश करने के लिए भांग, धतूरा, बेलपत्र तथा आक जैसी चीजों को चढ़ाया जाता है। किन्तु क्या आप जानते हैं महादेव को तुलसी के पत्ते तथा कतेकी के पुष्प नहीं चढ़ाने चाहिए। आइए जानतें है इसके पीछे का कारण...
पौराणिक कथा के अनुसार, प्रभु श्री विष्णु तथा ब्रह्मा जी में विवाद होने लगा कि कौन बड़ा है तथा कौन छोटा है। दोनों देवता इस बात का निर्णय करने के लिए महादेव के पास पहुंचे। महादेव ने एक शिवलिंग प्रकट कर कहा कि जो उसके आदि तथा अंत का पता लगा लेगा वही बड़ा है। तत्पश्चात, प्रभु श्री विष्णु बहुत ऊपर तक गए किन्तु इस बात का पता नहीं लगा पाएं। वहीं ब्रह्मा जी बहुत नीचे तक गए किन्तु उन्हें भी कोई छोर नहीं मिला। नीचे आते समय उनकी नजर केतकी के फूल पर पड़ी जो उनके साथ चल रहा था। ब्रह्मा जी ने केतकी के फूल को मिथ्या बोलने के लिए मना लिया। उन्होंने महादेव से कहा कि मैंने इसका पता लगा लिया है। तथा केतकी के फूल से गवाही दिलवा दी। महादेव ने ब्रह्ना जी का झूठ पकड़ लिया। उन्होंने उसी वक़्त झूठ बोलने के लिए ब्रह्मा जी का सिर काट दिया तथा केतकी के पुष्प को अपनी पूजा से वंचित कर दिया ।इसलिए भोलेनाथ पर केतकी के फूल नहीं चढ़ाएं जाते है।
पौराणिक कथा के मुताबिक, तुलसी का नाम वृंदा था तथा वह जालंधर नाम के दानव की पत्नी थी। वह अपनी पत्नी पर जुल्म करता था। महादेव ने विष्णु से जालंधर को सबक सिखाने के लिए कहा। तब प्रभु श्री विष्णु ने छल से वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग कर दिया था। जब वृंदा को यह बात पता चली तो उसने प्रभु श्री विष्णु को श्राप दिया कि आप पत्थर के बन जाओगे। तब प्रभु श्री विष्णु जी ने तुलसी को कहा कि मैं तुम्हारा जांलधर से बचाव कर रहा था तथा अब मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम लकड़ी का बन जाओ। इसके पश्चात् वृंदा तुलसी का पौधा बन गई।
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