बॉलीवुड फिल्मों के जाने माने मशहूर अभिनेता रणदीप हुड्डा की फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ बीते कुछ दिनों से ख़बरों में हैं। भले ही बॉक्स ऑफिस पर उनकी फिल्म कुछ विशेष कमाल नहीं दिखा पाई। मगर रणदीप ने अपने बेमिसाल अभिनय से सभी का दिल जीत लिया। ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ फिल्म में रणदीप हुड्डा ने विनायक दामोदर सावरकर की भूमिका निभाई है। साथ ही उन्होंने फिल्म के डायरेक्शन, डायलॉग- राइटिंग एवं स्क्रिप्ट पर भी काम किया है।
बता दें, फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ का ऐलान तकरीबन 2 वर्ष पहले किया गया था। उस समय फिल्म का डायरेक्शन महेश मांजरेकर करने वाले थे। मगर उन्होंने ये फिल्म छोड़ दी। हाल ही में अपने एक इंटरव्यू के चलते उन्होंने बताया कि रणदीप के बढ़ते जुनून के चलते उन्हें ये फिल्म छोड़नी पड़ी। फिल्म के प्रमोशन के चलते ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ का शेड्यूल आगे बढ़ने के कारण किस प्रकार से घर और प्रॉपर्टी गिरवी रखनी पड़ी ये बताने वाले रणदीप, महेश मांजरेकर ने फिल्म क्यों छोड़ी, इस सवाल का जवाब देने से बचते हुए दिखाई दिए। उन्होंने केवल यही कहा था कि वो पुरानी चीजों पर बात नहीं करना चाहते। मगर हाल ही में महेश मांजरेकर ने इस बारे में खुलकर बात की है। महेश मांजरेकर ने कहा, “मेरे बारे में कई बातें हुईं। लोगों ने ये भी कहा कि मुझे सावरकर के विचार अच्छे नहीं लगे, इसलिए मैंने फिल्म छोड़ दी। मगर इसमें कोई सच्चाई नहीं है। मैं हमेशा से सावरकर की जिंदगी पर फिल्म बनाना चाहता था। संदीप सिंह ये कॉन्सेप्ट लेकर मेरे पास आए। तथा इस भूमिका के लिए रणदीप की कास्टिंग की गई।
आरम्भ में रणदीप ये भी नहीं जानते थे कि सावरकर काले थे या गोरे। मगर ये क्रेडिट रणदीप को देना पड़ेगा कि शूटिंग से पहले उन्होंने पूरा इतिहास पढ़ा। आरम्भ में उन्हें लगता था कि वीर सावरकर खलनायक हैं। मगर मेरे बोलने पर उन्होंने सावरकर के बारे में सब कुछ पढ़ डाला। स्क्रिप्ट की बात करें तो इस फिल्म की 70 प्रतिशत स्क्रिप्ट मेरी है।” आगे महेश मांजरेकर ने कहा, “पहली स्क्रिप्ट रीडिंग में ही रणदीप हुड्डा ने कहानी में परिवर्तन करना शुरू कर दिया। स्क्रिप्ट लॉक होने के बाद भी शूटिंग रोक दी गई। फिल्म का बजट बढ़ना आरम्भ हो गया था। मुझे लगा कि मैं मर ही जाऊंगा। क्योंकि यदि फिल्म खराब हुई तो मेरी बदनामी हो सकती थी। और मेरी ये राय थी कि यदि वीर सावरकर पर फिल्म बनानी है तो वो अच्छी ही बननी चाहिए। मगर रणदीप को फिल्म में हिटलर से लेकर भगत सिंह, लोकमान्य तिलक सब कुछ चाहिए था। उन्हें 1857 के ‘इंकलाब जिंदाबाद’ बोलने वाले लोग भी इस फिल्म में सम्मिलित करने थे।”
आगे महेश मांजरेकर ने कहा, "मैंने रणदीप को समझाने का प्रयास करते हुए कहा था कि आप वीर सावरकर पर फिल्म बना रहे हैं। इसलिए वीर सावरकर पर ही फोकस रखा जाना चाहिए। बाद में उन्होंने लेखन एवं निर्देशन प्रक्रिया में भी हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। वो बताने लगे कि सीन किस प्रकार से करना चाहिए। उनका फिल्म के लिए जुनून इतना बढ़ गया कि जब मैं रणदीप से मिलने जाता तो वो वीर सावरकर की भांति कपड़े पहनकर बैठे हुए दिखाई देते थे। मैंने उसे ये बोलते हुए समझाने का प्रयास किया कि ‘गांधी’ फिल्म में भी नाथूराम गोडसे को केवल अंतिम सीन में दिखाया गया है। मगर वो नहीं माने। यदि रणदीप हुड्डा इस फिल्म का हिस्सा नहीं होते तो मैं एक अच्छी फिल्म बनाता। परेशानी ये नहीं है कि रणदीप ने सावरकर के बारे में पढ़ा नहीं, उन्होंने मुझसे तीन गुना सावरकर के बारे में पढ़ा है। मगर केवल पढ़ा है, समझा नहीं। और इसलिए मैंने ये फिल्म छोड़ने का निर्णय लिया।”
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