कर्नाटक चुनाव में इन मुद्दों पर होगा घमासान

कर्नाटक चुनाव में इन मुद्दों पर होगा घमासान
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बंगलुरु: कर्नाटक के चुनावी घमासान में मात्र कुछ ही दिन बचे हैं, 12 मई को कर्नाटक में 224 विधानसभा सीटों पर एक चरण में मतदान होना है, जिसके नतीजे 15 मई को घोषित किए जाएंगे. तो आइए जानते हैं कि कर्नाटक चुनाव में प्रमुख मुद्दे क्या हैं.

एक ओर जहाँ वर्तमान सीएम सिद्धारमैया के फेस और राहुल गांधी के धारदार अभियान के बल पर जहां कांग्रेस सत्ता बरकरार रख दूसरी पारी सुनिश्चित करने के मिशन पर जुटी हुई है तो वहीं बीजेपी को मोदी लहर और येदियुरप्पा के लिंगायत कार्ड के जरिए सत्ता में वापसी की पूरी उम्मीद है. सिद्धारमैया के शासनकाल में कर्नाटक में 3000 से ज्यादा किसानों के आत्महत्या के मुद्दे को भाजपा भुनाने में लगी हुई है, जबकि कांग्रेस येदियुरप्पा पर आरोप मढ़ रही है. सिद्धारमैया सरकार के सामने पिछले 4 साल से जारी सूखे का संकट चुनावी मुसीबत बन सकता है. गोवा से महादायी नदी के पानी के बंटवारे को लेकर सियासत गर्म है.

कर्नाटक चुनाव में स्थानीय भाषा का मुद्दा भी बेहद अहम् है, जिसे सिद्धारमैया बहुत इस्तेमाल कर रहे हैं, सिद्धारमैया ने इसके तहत रेलवे से कहा है कि वह टिकटों पर कन्नड़ भाषा का प्रयोग करे. केम्पेगौड़ा इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर कन्नड़ भाषा में सूचनाएं दी जाने लगीं, इसके अलावा भी कई कंपनियों द्वारा कन्नड़ भाषा का प्रयोग किया जाने लगा है.  एक और महत्त्व पूर्ण मुद्दा धर्म का है,  इन जातियों में लिंगायत, वोक्कालिंगा, कुरुब या अहिंदा और दलित प्रमुख हैं. कुछ हिस्सेदारी मुस्लिम वोटरों की भी है. इसलिए सभी पार्टियां इन जाति-समुदायों को अपने पक्ष में करने में लगी हैं.

कर्नाटक के चुनाव में जनता ने अपनी मुसीबतों का एक घोषणापत्र बना कर सारे राजनीतिक दलों को सौंपा है, उसे पूरा करने के लिए भी राजनीतिक दल दावे कर रहे हैं. वहीँ  राज्य की आबादी में दलित समुदाय का हिस्सा करीब 20 फीसदी है. 100 सीटों पर दलित वोटबैंक असरदार है. इनमें से 36 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित हैं. इसलिए दलित समर्थन भी चुनावी जीत का अहम् हिस्सा माना जा रहा है. गौरतलब है कि  2013 के विधानसभा चुनाव में राज्य की कुल 224 सीटों में से कांग्रेस ने 122 जीती थी. जबकि बीजेपी 40 और जेडीएस ने 40 सीटों पर कब्जा किया था, जबकि बीजेपी से बगावत कर चुनाव लड़ने वाले बीएस येदियुरप्पा की केजेपी महज 6 सीटें जीत सकी थी. इसके अलावा अन्य को 16 सीटें मिली थी. इस बार फिर येदियुरप्पा ने भाजपा से हाथ मिलाया है, तो अब देखना ये है कि दोनों एक दूसरे के लिए कितने भाग्यशाली साबित होते हैं. 

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