रावण क्रोधी, अहंकारी और कामी था, हालांकि इन सबके अलावा वह एक महापंडित भी था. रावण ने खुद के बड़े होने का अहंकार किया और माता सीता का हरण किया, हालांकि उसने कुछ ग्रंथों की रचना भी की. जिसके बारे में कोई भी पढ़ें तो वह ज्ञान से भरपूर हो सकता है. आइए जानते हैं रावण के कुछ प्रमुख ग्रंथों के बारे में...
शिव तांडव स्तोत्र...
शिव तांडव स्तोत्र को आज के समय में कौन नहीं जानता है. रावण का यह प्रमुख ग्रंथ है. इसमें रावण ने भगवान शिव का वर्णन किया है. इसकी रचना रावण ने उस समय की थी जब वह कैलाश पर्वत उठाकर लंका ले जा रहा था. फिर भगवान शिव ने अपने अंगूठे से हल्का सा जो दबाया तो पुनः कैलाश पर्वत उसी स्थान पर आ गया जहां वो पहले था. इसमें रावण का हाथ दब गया. अपने इस कृत्य पर रावण ने शिव जी से क्षमा माँगी और वह कहने लगा 'शंकर-शंकर'- अर्थात क्षमा करिए. इसके साथ रावण ने शिव जी की स्तुति की. आगे चलकर इसे 'शिव तांडव स्तोत्र' का नाम दिया गया.
अरुण संहिता...
इसका रचयिता भी रावण को माना जाता है. यह संस्कृत भाषा का मूल ग्रंथ माना जाता है. इसके संबंध में ज्ञान रावण को सूर्य के सार्थी अरुण ने दिया था. इसमें आपको जन्म कुण्डली, हस्त रेखा और सामुद्रिक शास्त्र का मिश्रण देखने को मिलेगा.
रावण संहिता...
इसमें आपको रावण के बारे में संपूर्ण जानकारी मिलेंगी. साथ ही रावण संहिता में ज्योतिष की बेहतर जानकारियों का समावेश भी है.
चिकित्सा और तंत्र क्षेत्र के ग्रंथ...
रावण ने चिकित्सा और तंत्र क्षेत्र के ग्रंथ की रचना भी की है. इनका नाम 1. दस शतकात्मक अर्कप्रकाश, 2. दस पटलात्मक उड्डीशतंत्र, 3. कुमारतंत्र और 4. नाड़ी परीक्षा है.
अन्य ग्रंथ...
इन ग्रंथों के अलावा रावण द्वारा अंक प्रकाश, इंद्रजाल, कुमारतंत्र, प्राकृत कामधेनु, प्राकृत लंकेश्वर, ऋग्वेद भाष्य, रावणीयम, नाड़ी परीक्षा आदि को भी रचा गया है.
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