पितृ पक्ष के आखिरी दिन जरूर बनाएं 16 पूड़ियां, मिलेगा पितरों का आशीर्वाद

पितृ पक्ष के आखिरी दिन जरूर बनाएं 16 पूड़ियां, मिलेगा पितरों का आशीर्वाद
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सनातन धर्म में पितृ पक्ष को अत्यंत पवित्र और विशेष अवधि माना गया है। यह 16 दिवसीय समय अंतराल है, जिसमें लोग अपने पूर्वजों, जिन्हें पितर कहा जाता है, का स्मरण करते हैं और उनके लिए तर्पण व श्राद्ध कर्म करते हैं। इस अवधि का संबंध मृत्यु और मोक्ष से है, जिसमें परिवार के सदस्य अपने दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान यमराज, जो मृत्यु के देवता हैं, पितरों को कुछ समय के लिए धरती पर उनके परिजनों से तर्पण ग्रहण करने के लिए भेजते हैं। यदि पितरों का विधिपूर्वक तर्पण और श्राद्ध किया जाए, तो वे प्रसन्न होकर अपने लोक लौट जाते हैं और अपनी संतान व परिजनों को आशीर्वाद देते हैं। इसके परिणामस्वरूप परिवार में सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है।

पितृ पक्ष की अंतिम तिथि को 'अमावस्या' कहा जाता है, जो सर्वपितृ अमावस्या या महालया अमावस्या के रूप में जानी जाती है। इस दिन उन सभी पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है, जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं होती है या किसी कारणवश श्राद्ध न हो पाया हो। हिंदू धर्म में श्राद्ध कर्म को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि यह पितरों के प्रति कर्तव्य और सम्मान की एक धार्मिक प्रथा है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन पितरों का सही ढंग से तर्पण करने से वे प्रसन्न होते हैं और अपने परिवार के लिए आशीर्वाद प्रदान करते हैं, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

सर्वपितृ अमावस्या 2024 की तिथि
वैदिक पंचांग के अनुसार, 2024 में सर्वपितृ अमावस्या 2 अक्टूबर को मनाई जाएगी। यह तिथि आश्विन माह की अमावस्या को आती है। इस बार अमावस्या तिथि का प्रारंभ 1 अक्टूबर को रात 9 बजकर 39 मिनट पर होगा और इसका समापन 2 अक्टूबर को रात 12 बजकर 18 मिनट पर होगा। इसलिए, श्राद्ध और तर्पण के लिए 2 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या मनाने का विधान है।

पितृ पक्ष के दौरान होने वाली पूजा और तर्पण विधि
पितृ पक्ष के दौरान, पितरों का श्राद्ध और तर्पण विधिपूर्वक किया जाता है। पंडितों द्वारा पुरोहित मंत्रों का उच्चारण किया जाता है और विशेष अनुष्ठान संपन्न किए जाते हैं। तर्पण में दूध, जल, तिल, चावल, और घी का उपयोग किया जाता है। श्राद्ध कर्म में भोजन तैयार करके पितरों के नाम से उन्हें अर्पित किया जाता है, जिसे पिंडदान कहते हैं। पिंडदान के दौरान, आटे या चावल के पिंड बनाए जाते हैं और इन्हें कुश (एक प्रकार का पवित्र घास) पर रखा जाता है। यह पिंड पितरों को अर्पित किए जाते हैं ताकि उनकी आत्मा तृप्त हो सके। यह प्रक्रिया वैदिक अनुष्ठानों के अनुसार संपन्न की जाती है।

शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध के दौरान गरीबों, ब्राह्मणों, और जरुरतमंदों को भोजन और दान देना भी महत्वपूर्ण होता है। ऐसा करने से पितरों को पुण्य मिलता है और वे प्रसन्न होते हैं। यह भी मान्यता है कि पितृ पक्ष के समय किसी प्रकार के मांगलिक कार्य, जैसे विवाह या अन्य शुभ कार्य, करना उचित नहीं माना जाता है क्योंकि यह समय विशेष रूप से पितरों की स्मृति और उनके लिए पूजा-अर्चना का होता है।

सर्वपितृ अमावस्या का महत्व
सर्वपितृ अमावस्या का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन उन सभी पितरों का तर्पण और श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु तिथि याद नहीं है या किसी कारणवश उनका श्राद्ध नहीं किया गया हो। पूरे पितृ पक्ष के दौरान किए गए अनुष्ठानों में यदि कोई त्रुटि हो जाए या किसी प्रकार की भूल हो जाए, तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन उससे क्षमा मांगी जाती है। इस दिन भूले-बिसरे पितरों का भी तर्पण किया जाता है, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वे प्रसन्न होकर अपने स्थान को लौट जाते हैं।

यह दिन उन लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण है जिनके पास पितरों की मृत्यु तिथि की जानकारी नहीं है। सर्वपितृ अमावस्या पर किया गया श्राद्ध सभी पितरों को समर्पित माना जाता है। इस दिन किए गए तर्पण और पिंडदान से पितर तृप्त होते हैं और उनका आशीर्वाद परिवार के लिए शुभ फल प्रदान करता है।

16 पूड़ियां बनाने का कारण
सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध कर्म के दौरान 16 पूड़ियां बनाना विशेष परंपरा का हिस्सा है। 16 पूड़ियां पितरों की संख्या का प्रतीक मानी जाती हैं। श्राद्ध के दौरान, पूड़ियों पर चावल की खीर रखी जाती है और उन्हें अर्पित किया जाता है। इसके बाद सबसे पहले कुछ पूड़ियां कौवे के लिए निकाली जाती हैं और छत पर रखी जाती हैं, क्योंकि कौवा पितरों का प्रतीक माना जाता है। साथ ही, पानी का गिलास या बर्तन भी रखा जाता है। इसके बाद गाय, कुत्ते, और चींटियों के लिए भी पूड़ियां निकाली जाती हैं। यह माना जाता है कि इन सभी को भोग लगाने से पितरों तक भोजन पहुंचता है और वे तृप्त हो जाते हैं।

गाय को पवित्र माना जाता है, और हिंदू धर्म में उसे माता का दर्जा दिया गया है। कुत्ता यमराज का वाहन माना जाता है, और चींटियां धरती की पवित्रता का प्रतीक हैं। इस प्रकार, इन सभी जीवों को भोजन अर्पित करने से भोग पितरों तक पहुंचता है और उनका तृप्ति का संदेश मिलता है।

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