ये तो होना ही था ! खड़गे बने कांग्रेस सुप्रीमो, क्या 'गांधी परिवार' से हार गए शशि थरूर ?

ये तो होना ही था ! खड़गे बने कांग्रेस सुप्रीमो, क्या 'गांधी परिवार' से हार गए शशि थरूर ?
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नई दिल्ली: आखिर वही हुआ, जिसका सियासी पंडित शुरू से अनुमान लगा रहे थे। 22 साल बाद हुए कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे ने जीत दर्ज कर ली है, वो भी एकतरफा। कांग्रेस के डायनामिक नेता माने जाने वाले शशि थरूर उनके सामने मुकाबले में कहीं भी नहीं टिके। 9385 वोटों में से खड़गे को 7897 वोट प्राप्त हुए, जबकि उनके खिलाफ चुनाव लड़ रहे शशि थरूर को महज 1072 वोटों से संतोष करना पड़ा. वहीं, 416 वोट अमान्य घोषित कर दिए गए. इससे पहले थरूर ने चुनाव में धांधली होने के आरोप भी लगाए थे, अशोक गहलोत द्वारा खड़गे का चुनाव प्रचार करने पर भी सवाल उठाए थे, लेकिन उनकी नहीं सुनी गई। क्योंकि, शशि थरूर कांग्रेस के बागी गुट G–23 के सदस्य भी थे, जो गांधी परिवार को सलाह देने की कोशिश कर रहा था। इसी समूह में गुलाम नबी आज़ाद और कपिल सिब्बल भी थे, लेकिन वे कांग्रेस में सुधार की राह देखते-देखते पार्टी को ही अलविदा कह चुके हैं। 

बता दें कि, कई नेताओं के मनाने, तीन राज्यों में प्रस्ताव पारित करने के बाद भी जब राहुल गांधी 2019 की हार को भुलाकर दोबारा अध्यक्ष पद का जोखिम उठाने के लिए तैयार नहीं हुए, तब कहीं जाकर 20– 22 साल बाद कांग्रेस में इस पद के लिए चुनाव कराए जाने की भूमिका बनी थी, किंतु पारिवारिक और राजनीतिक हितों ने उसमें भी सेंध लगा दी। परिवारवाद के आरोप को धोने के लिए गांधी परिवार ने चुनाव से पैर पीछे तो खींचे, लेकिन कुर्सी का नियंत्रण अपने हाथ में रहे, इसलिए परदे के पीछे रहकर तमाम चालें चली। खड़गे का अचानक चुनाव में आना या फिर लाया जाना, इसी बात का संकेत था, कि उन्हें ऊपर से निर्देश मिले थे। 
 
जिस तरह अनायास ही मल्लिकार्जुन खड़गे पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार बन गए थे, उसको देखते हुए सियासी पंडित यही अनुमान लगा रहे थे कि चुनाव का परिणाम पहले से ही लिखा जा चुका है। दरअसल, गांधी परिवार किसी ऐसे व्यक्ति को गद्दी पर बिठाना चाहता था, जो उनके बिना कोई फैसला लेना तो दूर, फैसले पर चर्चा भी करने की बैठक भी न बुलाए। खड़गे ने खुद भी गांधी परिवार के रिमोट कंट्रोल होने के सवाल पर कहा था कि मुझे कांग्रेस चलाने के लिए गांधी परिवार का सहयोग और मार्गदर्शन लेते रहूंगा।  

दरअसल, कांग्रेस में योग्यता की लगातार अनदेखी हो रही है, सचिन पायलट, शशि थरूर जैसे नेता इसका ज्वलंत उदाहरण हैं, जो आज युवाओं में पार्टी की विचारधारा को विकसित कर सकते हैं, कांग्रेस में नई जान फूंक सकते हैं, किंतु गांधी परिवार की रिमोट अपने हाथ में रखने की तीव्र इच्छा, उन्हें पीछे धकेल देती है। क्योंकि ये संभव है कि वो हर हुक्म को बिना सोचे समझे बजा लाने की जगह सवाल करें और ये सवाल दशकों से आदेश देने वाले परिवार को नागवार गुजरे।  खड़गे कांग्रेस के लिए संजीवनी बन पाते हैं या नहीं, इस सवाल का जवाब तो समय ही देगा, लेकिन वो गांधी परिवार के विश्वसनीय अवश्य रहेंगे और कुर्सी पर हाई कमान का दबदबा बना रहेगा। वहीं, शशि थरूर, गांधी परिवार के इस रवैए से जरूर निराश होंगे और वे आगे क्या कदम उठाते हैं, ये देखने लायक होगा।

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