नई दिल्ली: विपक्षी गठबंधन INDIA ब्लॉक में नेतृत्व को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। महाराष्ट्र चुनाव में हुए नुकसान के बाद यह खींचतान और बढ़ गई है। अब तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने ममता बनर्जी को गठबंधन की कमान सौंपने की मांग दोहराई है। पार्टी के सांसद कीर्ति आजाद ने ममता की नेतृत्व क्षमता का हवाला देते हुए कांग्रेस की कार्यशैली पर कड़ा सवाल उठाया है।
कीर्ति आजाद ने कहा कि ममता बनर्जी का बीजेपी के खिलाफ स्ट्राइक रेट 70% है, जबकि कांग्रेस का मात्र 10%। उन्होंने कहा, "ममता बनर्जी बीजेपी को सीधी चुनौती देने में सक्षम हैं। कांग्रेस को यह समझना चाहिए। जब सभी घटक दल ममता का समर्थन कर रहे हैं, तो कांग्रेस क्यों पीछे हट रही है?" उन्होंने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा कि पार्टी अपने पुराने अहंकार से बाहर नहीं आ पाई है। आजाद का मानना है कि कांग्रेस अपने गठबंधन सहयोगियों की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरी है।
ममता बनर्जी को समर्थन सिर्फ TMC तक सीमित नहीं है। उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी ने भी ममता को राहुल गांधी से अधिक योग्य बताया है। शिवसेना की प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, "ममता बनर्जी ने बीजेपी के खिलाफ प्रभावी लड़ाई लड़ी है। लीडर वही होगा, जो सभी को साथ लेकर चल सके।" वहीं, शरद पवार ने ममता को INDIA गठबंधन की सबसे मजबूत नेता बताते हुए उन्हें नेतृत्व सौंपने की सिफारिश की है।
राहुल गांधी की राजनीतिक समझ और कांग्रेस की रणनीति को लेकर सहयोगी दलों के भीतर असंतोष बढ़ता जा रहा है। हाल ही में संसद सत्र के दौरान राहुल गांधी का बार-बार अडानी समूह का मुद्दा उठाना सहयोगियों को खटक रहा है। सहयोगी दलों का मानना है कि यह मामला न्यायपालिका में है और अब तक कोई ठोस आरोप सिद्ध नहीं हुआ है। ऐसे में संसद में इसे बार-बार उठाने के बजाय, विपक्ष को महंगाई, बेरोजगारी और किसान मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए।
महाराष्ट्र चुनाव में भी राहुल गांधी की रणनीति पर सवाल उठे। साथी दलों ने उनसे अपील की थी कि वे वीर सावरकर पर बयानबाजी से बचें, क्योंकि महाराष्ट्र की जनता उन्हें आदर करती है। लेकिन राहुल ने इन सुझावों को नजरअंदाज किया, जिसका खामियाजा कांग्रेस और उसके सहयोगियों को उठाना पड़ा।
कभी देश पर सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी अब राजनीतिक रूप से पिछड़ती नजर आ रही है। राहुल गांधी की जिद और उनकी मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति ने पार्टी की स्थिति को कमजोर किया है। सहयोगी दल अब उनकी नेतृत्व क्षमता पर खुलेआम सवाल उठा रहे हैं। क्या कांग्रेस और गांधी परिवार अपनी राजनीतिक गलतियों को सुधार पाएंगे, या यह पतन जारी रहेगा? यह सवाल अब देश की राजनीतिक बहस का एक अहम हिस्सा बन चुका है।