कोलकाता: कलकत्ता उच्च न्यायालय के डिवीजन बेंच में उप कुलपति नियुक्ति मामले से ममता बनर्जी सरकार को बड़ा झटका लगा है. हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की खंडपीठ ने मंगलवार (14 मार्च) को कहा कि प्रदेश सरकार को उप कुलपतियों का कार्यकाल ख़त्म होने के बाद फिर से नियुक्त करने का कोई अधिकार नहीं है. इसके साथ ही राज्य के लगभग 29 उप कुलपतियों के पद रद्द किए गए. चीफ जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की खंडपीठ ने इसका आदेश दिया.
हालाँकि, ममता बनर्जी सरकार, कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के बारे में सोच रही है. इससे पहले राज्य सचिवालय नबान्न ने कोलकाता यूनिवर्सिटी के उप कुलपति के रूप में सोनाली चक्रवर्ती को पुनः नियुक्त किया था, तो उस फैसले को भी मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने निरस्त कर दिया था. इस बार भी अदालत ने बताया कि कार्यकाल ख़त्म होने के बाद राज्य को दोबारा नियुक्ति का अधिकार नहीं है. इसलिए चीफ जस्टिस की खंडपीठ ने सभी पदों को रद्द करने का आदेश दिया.
दरअसल, बंगाल के लगभग 25 विश्वविद्यालयों के उप कुलपतियों की नियुक्ति में यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (UGC) की गाइडलाइन का पालन नहीं किया गया. नेशनलिस्ट प्रोफेसर्स एंड रिसर्चर्स एसोसिएशन (RSS प्रोफेसर एसोसिएशन) ने इस मांग को उठाते हुए उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल की थी. जब यह मामला सामने आया था, तब जगदीप धनखड़ बंगाल के गवर्नर थे. वादकारियों ने रोष प्रकट करते हुए कहा था कि सत्ता पक्ष ने उप कुलपतियों की नियुक्ति की नोटिफिकेशन जारी करने से पहले राज्यपाल की इजाजत लेना जरूरी नहीं समझा था. उन्होंने यह भी कहा कि उप कुलपति के पद पर नियुक्त लोगों के पद भी गवर्नर निरस्त कर सकते हैं. हालांकि उस वक्त ऐसा कुछ नहीं हुआ था. जिसके बाद मामला कोर्ट में गया.
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