भारत के पहले क्रांतिकारी थे मंगल पांडे

भारत के पहले क्रांतिकारी थे मंगल पांडे
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भारत के प्रथम क्रांतिकारी के रूप में मशहूर मंगल पांडे को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्रामी भी बोले जाते है। उनकी ओर से शुरू किए अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई पूरे देश में एक जंगल की आग की तरह फैल गई। इस आग को बुझाने की अंग्रेजी का प्रयास नाकाम इसलिए  रहा क्योंकि मंगल पांडे की तरह पूरे देश के लोगों में यह आग भड़क चुकी थी. इसी के चलते देश 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी भी मिल गई थी। वहीं देश के इस महान क्रांतिकारी को आज के दिन ही फांसी पर चढ़ाया गया था। आज इनकी पुण्यतिथि के खास अवसर पर आपको बताते हैं इनसे जुड़ी कुछ अनसुनी बातें जो शायद आपको पता नहीं होगी।

प्रारंभिक जीवन: मंगल पांडे का जन्म 30 जनवरी 1831 को संयुक प्रांत के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम दिवाकर पांडे और मां का नाम श्रीमती अभय रानी था। सामान्य ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने की वजह से युवावस्था में उन्हें रोजी-रोटी की मजबूरी में अंग्रेजों की फौज में नौकरी करने पर मजबूर किया था। वहीं वह वर्ष 1849 में 22 वर्ष की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हुए। मंगल बैरकपुर की सैनिक छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री की पैदल सेना में एक सिपाही थे।

इसलिए हुई थी मंगल पांडे को फांसी: ईस्ट इंडिया कंपनी की रियासत व राज हड़प और फिर ईसाई मिस्त्रियों की ओर से धर्मान्तर आदि की नीति ने लोगों के मन में अंग्रेजी हुकूमत के लिए पहले ही नफरत पैदा कर दी थी और जब कंपनी की सेना की बंगाल इकाई में राइफल में नई कारतूसों का उपयोग शुरू हुआ तो  केस और बिगड़ने लगी। जंहा इन कारतूसों को बंदूक में डालने से पहले मुंह से खोलना पड़ता था और भारतीय सैनिकों के मध्य ऐसी खबर फैल गई कि इन कारतूसों को बनाने में गाय तथा सूअर की चर्बी का उपयोग किया जाता था।

भारतीय सैनिकों के साथ होने वाले भेदभाव से पूर्व से ही भारतीय सैनिकों में असंतोष था और नई कारतूसों वाली अफवाह ने आग में घी डालने का कार्य  किया। 9 फरवरी 1857 को जब 'नया कारतूस' देशी पैदल सेना को बांटा गया तब मंगल पांडे ने उसे लेने से मना किया जा चुका है। जिसके उपरांत उनके हथियार छीन लिये जाने और वर्दी उतार लेने का हुक्म हुआ। इतना ही नहीं उन पर कई हमलों को लेकर कोर्ट मार्शल का मुकदमा चलाकर 6 अप्रैल 1857 को फांसी की सजा का एलान कर दिया गया। फैसले के मुताबिक उन्हें 18 अप्रैल 1857 को फांसी दी जानी थी लेकिन ब्रिटिश सरकार ने मंगल पाण्डेय को निर्धारित तिथि से दस दिन पूर्व ही 8 अप्रैल साल 1857 को फांसी पर लटका गया था।

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