'भारतीय स्वाधीनता संग्राम' की जब भी बात होती है, मंगल पांडे का नाम सबसे अग्रणी होता है। इसी नाम ने अंग्रेजों को भारत से भगाने की शुरुआत की थी। 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम का विद्रोह इसी नाम के कारण शुरू हुआ था। साथ ही मंगल पांडे ने ही 'मारो फिरंगी को' नारा भी दिया था। मंगल पांडे के इस नारे ने ख़ूब जोर पकड़ा और अंग्रेजों के ख़िलाफ़ यहां से छिड़ी आजादी की जंग। गुलाम जनता और सैनिकों के दिल में क्रांति की जल रही आग को इसने और अधिक धधकाने का काम किया।
मंगल पांडे ऐसे स्वतंत्राता सेनानी थे, जिनसे अंग्रेजी हुकूमत भी थर-थर कांपती थी। 19 जुलाई को साल 1827 में उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के नगवा ग्राम में उनका जन्म हुआ था। अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ विद्रोह की शुरुआत करने से वे ब्रिटिश हुकूमत की निगाहों में खटकने लगे थे।
अंग्रेजी हुकूमत ने 8 अप्रैल, 1857 का दिन मंगल पांडेय की फांसी के लिए चुना। हालांकि बैरकपुर के जल्लादों ने मंगल पांडे को फांसी देने से इंकार कर दिया। माँ भारती के सच्चे सपूत को फांसी के फंदे पर चढ़ाने से उन्होंने साफ़ इंकार कर दिया। बाद में कलकत्ता (कोलकाता) से चार जल्लाद बुलाए गए और 8 अप्रैल, 1857 के सूर्य ने उदय होने के साथ ही मंगल पांडे के बलिदान का समाचार इस पूरी दुनिया को सुनाया। माँ भारती के लिए हंसते-हंसते एक वीर पुत्र शहीद हो गया। माँ भारती के शहीद बेटे को सम्मान देते हुए बाद में भारत सरकार ने बैरकपुर में शहीद मंगल पांडे महाउद्यान के नाम से उसी स्थान पर उद्यान बनवाया।
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