नई दिल्ली: पीएम नरेंद्र मोदी का मंगलयान को लेकर वह बयान आपको याद होगा, जिसमें उन्होंने कहा था कि हमारा मंगलयान हॉलीवुड फिल्म ग्रैविटी से भी कम खर्च पर बना है। महज 450 करोड़ रुपये में अंतरिक्ष यान यानी स्पेसक्राफ्ट बनाने में ही नहीं, उसके उद्देश्य में मिली कामयाबी वाकई हम सभी भारतीयों के लिए गर्व की बात है। किन्तु, आज जब हमसे मंगलयान का संपर्क टूट गया है, तब उसकी एक और खासियत ने देशवासियों को हैरान कर दिया है। दरअसल, मंगलयान अपनी निर्धारित जिंदगी से 16 गुना अधिक जिया है। दरअसल, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) ने मंगलयान को महज छह माह की लाइफ के साथ अंतरिक्ष में भेजा था, मगर वह 8 वर्ष 8 दिन जिंदा रहा।
बता दें कि, मंगल ग्रह पर इतने ग्रहण लगे कि मंगलयान बार-बार सूर्य की रोशनी से महरूम हो जा रहा था। चूंकि इस भारतीय अंतरिक्षयान में लगी बैटरी बगैर सूर्य की रोशनी के 1 घंटे 40 मिनट से अधिक नहीं चल सकती थी, इसलिए एक बार साढ़े सात घंटे के लंबे ग्रहण से बैटरी ने दम तोड़ दिया। यदि मंगल पर इतना लंबा ग्रहण नहीं लगता, तो हमारा मंगलयान और भी कई दिनों तक जीवित रहता और हमें महत्वपूर्ण जानकारियों भेजता रहता। मंगलयान को 5 नवंबर 2013 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ध्रुवीय प्रक्षेपण यान PSLV C-25 से प्रक्षेपित किया गया था, जो 24 सितंबर 2014 को मंगल की कक्षा में दाखिल हुआ था।
उस दिन भारत के नाम यह रिकॉर्ड दर्ज हो गया था, जिसने एक ही बार में अपने यान को सीधे मंगल ग्रह तक पहुंचाने में सफलता हासिल की थी। सूत्रों का कहना है कि, मंगलयान से दोबारा संपर्क स्थापित कर पाना नामुमकिन है। ISRO के यूआर राव सैटलाइट सेंटर (URSC) के निदेशक ने 27 सितंबर को भी यही बात कही थी। हालांकि, ISRO ने अब तक इसकी औपचारिक घोषणा नहीं की है। ISRO के एक और वरिष्ठ अधिकारी ने मीडिया को बताया है कि इस वर्ष 2022 में मंगल पर बड़ा लंबा ग्रहण लगा था।
वैसे तो सैटलाइट को इस तरह बनाया गया था कि वो ग्रहण के दायरे से खुद-ब-खुद बाहर हो जाए। उसने कई बार ऐसा किया भी था। मगर ग्रहण से रिकवरी के दौरान उसका ईंधन समाप्त हो गया होगा। उन्होंने बताया कि मंगलयान से संपर्क टूटने की एक वजह यह भी हो सकती है कि जब उसने ग्रहण के साये से निकलने के लिए दिशा बदलने के समय धरती की ओर मुड़े एंटीना का मुंह भी दूसरी दिशा में चला गया होगा। मंगलयान में पांच पेलोड लगे थे, जिन्होंने भारत को प्रथम वर्ष 1टीबी डेटा और पांच सालों में 5 टीबी डेटा भेजा था।
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