नई दिल्ली: भारत में जातिगत जनगणना का मुद्दा लंबे समय से चर्चा में है, और इसे लेकर विपक्ष लगातार मांग करता रहा है। खासतौर पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में जाति जनगणना को लेकर जोर-शोर से आवाज उठाई है। मगर सवाल यह उठता है कि जब कांग्रेस की सरकार ने 2011 में जातिगत जनगणना करवाई थी, तो उसके आंकड़े अब तक सार्वजनिक क्यों नहीं किए गए?
कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार के दौरान, 2011 में जातियों का आंकड़ा इकट्ठा करने का निर्णय लिया गया था। इस जनगणना का उद्देश्य था कि गरीबी और सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर लोगों की जाति की जानकारी जुटाई जाए। इसके लिए सोशियो इकोनॉमिक कास्ट सेंसस (SECC) का आयोजन हुआ, जिसमें कुछ वर्गों को गरीबों की सूची में ऑटोमैटिक शामिल करने का प्रावधान था। हालांकि, इस जनगणना के आंकड़े आज तक सार्वजनिक नहीं किए गए। 2022 में, NDA सरकार के सामाजिक न्याय मंत्रालय ने भी संसद में बताया कि फिलहाल इन आंकड़ों को जारी करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
इस मामले में कांग्रेस की भूमिका पर सवाल खड़े होते हैं। राहुल गांधी जातिगत जनगणना के लिए केंद्र सरकार पर लगातार दबाव बना रहे हैं, लेकिन उनकी पार्टी खुद अपने शासन के दौरान जुटाए गए आंकड़े अब तक जारी नहीं कर पाई है। कांग्रेस शासित कर्नाटक में भी जातिगत जनगणना करवाई गई थी, लेकिन उसके भी आंकड़े आज तक जारी नहीं हुए हैं।
ऐसे में यह सवाल उठता है कि अगर कांग्रेस वास्तव में जातिगत जनगणना को लेकर इतनी गंभीर है, तो उसने अपने शासनकाल में इस पर कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया? क्या यह मुद्दा सिर्फ वोट बटोरने के लिए उठाया जा रहा है? यदि कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर वाकई गंभीर होती, तो वह अब तक अपने द्वारा किए गए जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी कर चुकी होती और उस पर काम कर रही होती। मगर ऐसा नहीं हुआ, और आज भी जहाँ कांग्रेस सत्ता में है, वहां भी उसने अपने जातिगत वादों को लेकर क्या किया है, यह साफ देखा जा सकता है।
कुल मिलाकर, कांग्रेस के लिए यह समय है कि वह अपने उठाए हुए मुद्दों पर अमल करे और जातिगत जनगणना के आंकड़ों को सार्वजनिक करे, ताकि वह अपनी बातों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता साबित कर सके।
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