इस समय मानसून की उथल—पुथल जारी है। कहीं पर अतिवृष्टि, तो कहीं पर अनावृष्टि। ऐसा लग रहा है जैसे प्रकृति हम पर अपनी नाराजगी निकाल रही है। उत्तर प्रदेश, उत्तरकाशी के बाद अब केरल में बाढ़ से हालात खराब हैं। 50 साल बाद केरल में इस कदर प्रकृति का कहर टूटा है। राज्य के 56000 लोग राहत शिविरों में पहुंचा दिए गए हैं, तो 26 साल बाद केरल का इडुक्की बांध के गेट खोले गए हैंं। जो केरल इन दिनों पर्यटकों से गुलजार रहता था, वह अब अपनी जगह तलाशता नजर आ रहा है।
केरल में जहां जलप्रलय की स्थिति है, तो वहीं बुंदेलखण्ड उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से और महाराष्ट्र में सूखा पड़ रहा है। इस वजह से यहां के किसान आज भी आत्महत्या कर रहे हैं। मौसम के इस बिगड़ते मिजाज को प्राकृतिक असंतुलन कहें या फिर प्रकोप, यह समझने वाली बात है। ऐसा नहीं हैं कि ये पहली बार हुआ है, इससे पहले भी ऐसा ही प्राकृतिक असंतुलन देखने को मिला है। दरअसल, अगर मौसम इस तरह से अपनी लय बिगाड़ रहा है, तो इसके पीछे भी हम ही वजह हैं। पर्यावरण के लिए हमारा जो नजरिया है और हमने अपनी सुविधाएं जुटाने के लिए जिस तरह से पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ की है, उसका नतीजा हमारे सामने है। हमने न तो मौसम विज्ञानियों की चेतावनियों पर ध्यान दिया और न ही अपनी ओर से कोई भी प्रयास किया, प्रकृति को संवारने का। हमारी यही लापरवाही आज हमारे सामने खड़ी है।
दिनों—दिन वातावरण बिगड़ता जा रहा है। इस वातावरण असंतुलन को अगर अभी नहीं संभाला गया, तो आगे स्थिति और भयावह हो सकती है। अगर हम चाहते हैं कि हमारी आने वाली पीढ़ियां ऐसी भयावह स्थिति का सामना न करें, तो हमें अभी से इसके लिए प्रयास करना होंगे।
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