साहिबजादे अजित सिंह का बलिदान दिवस! प्राण दे दिए, लेकिन मुगलों के सामने सिर नहीं झुकाया

साहिबजादे अजित सिंह का बलिदान दिवस! प्राण दे दिए, लेकिन मुगलों के सामने सिर नहीं झुकाया
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नई दिल्ली: भारत के इतिहास में कई ऐसे वीर योद्धा हुए हैं जिनकी गाथाएं सुनकर आज भी रगों में खून उबलने लगता है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि इन वीरों की कहानियां अक्सर इतिहास के पन्नों में दबी रह गईं। उन्हीं महान बलिदानियों में से एक हैं साहिबजादा अजीत सिंह जी, जिनकी वीरता और बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

साहिबजादा अजीत सिंह जी का जन्म 11 फरवरी 1687 को पोंटा साहिब में माता सुंदरी जी और गुरु गोबिंद सिंह जी के घर हुआ था। उनका पालन-पोषण आनंदपुर में हुआ, जहां उन्हें धार्मिक ग्रंथों, दर्शन और इतिहास की शिक्षा दी गई। इसके साथ ही उन्होंने युद्धकला, तलवारबाजी, तीरंदाजी और घुड़सवारी का प्रशिक्षण लिया। केवल 12 वर्ष की आयु में अजीत सिंह जी ने अपनी वीरता का पहला प्रमाण दिया। उत्तर-पश्चिम पंजाब के पोथोहर क्षेत्र में एक सिख संगत पर हमला किया गया था। गुरु गोबिंद सिंह जी ने अजीत सिंह को 100 सैनिकों की कमान देकर भेजा। 23 मई 1699 को उन्होंने गांव में लूटी गई संपत्ति बरामद की और अपराधियों को दंडित किया। उनकी इस सफलता ने उन्हें एक कुशल योद्धा के रूप में स्थापित कर दिया।

साहिबजादा अजीत सिंह जी श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के सबसे बड़े पुत्र थे। जब मुगलों ने आनंदपुर साहिब को घेर लिया, तब उन्होंने अपने पिता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध किया। उनकी वीरता ऐसी थी कि मुगल सैनिक उनके सामने टिक नहीं पाए। जब उनके तीर खत्म हो गए, तब उन्होंने तलवार उठाई और अकेले ही दुश्मनों पर टूट पड़े। कई मुगलों का संहार करने के बाद जब उनकी तलवार भी टूट गई, तब उन्होंने अपनी आखिरी सांस तक लड़ते हुए शहादत दी।

21 दिसंबर 1705 को चमकौर की गढ़ी में हुई इस लड़ाई में साहिबजादा अजीत सिंह जी ने केवल 19 वर्ष की आयु में वीरगति प्राप्त की। उनके छोटे भाई, साहिबजादा जुझार सिंह जी ने भी इसी युद्ध में वीरता दिखाई और बलिदान दिया। साहिबजादा अजीत सिंह जी का जीवन साहस, त्याग और धर्म की रक्षा के लिए समर्पित था। उनके बलिदान ने आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया और आज भी उनकी वीरता की गाथाएं लोगों के दिलों में जिंदा हैं।

उनके बलिदान दिवस पर हम सभी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके जीवन से प्रेरणा लेते हैं कि धर्म और सत्य की रक्षा के लिए किसी भी बलिदान से पीछे नहीं हटना चाहिए। साहिबजादा अजीत सिंह जी का नाम इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगा।

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