Editor Desk: हर दिन हौसले की सैकड़ों कहानी लिखती है 'मारूफ' की ज़िंदगी

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"ख्वाहिशों भरी उम्र में 
वो उलझा रहता है युहीं 
खुद से बड़ी मशीनों में उलझकर
माँ की गरीबी दूर करने का ख्वाब लेकर
वो हर हाल में हँसते रहता है...."

 

गरीबी, आज के दौर में एक ऐसा शब्द जो किसी देश की डिक्शनरी में होना उस देश का दुर्भाग्य ही कहलाएगा.  गरीबी में पैदा होने वाली, गरीबी में जीने वाली और गरीबी में ही मर जाने वाली कितनी ही जिंदगियां गुमनाम अंधेरों में कब शुरू होकर खत्म हो जाती है, शायद किसी को पता नहीं चलता. ऐसी ही एक ज़िन्दगी है मारूफ की. 

फ़ोटो में जो हँसी मारूफ के चेहरे पर दिखाई दे रही है वो गरीब हँसी है, कोई कैसे बचपन को गिरवी रखकर गरीबी में हँस लेता है ये शायद मारूफ से सीखना चाहिए, एक ऐसी उम्र जब बाप सबसे बड़ी जरूरत होता है, एक ऐसी उम्र जब ज़िन्दगी नाजुक सी ख्वाहिशों को सहला कर आगे बढ़ती है और इन ख्वाहिशों में आगे चलने वाला अगर कोई होता है तो वो है बाप. कम उम्र में पिता को एक्सीडेंट में खोने के बाद माँ पर जैसे ढेरों दुःखों के बादल एक साथ फट कर गिर गए. 

'माँ अपने पति की मौत के बाद दो जून की रोटी के लिए मारूफ को एक कंपनी में काम करने ले गई, कंपनी में ज्यादा बच्चे होने के कारण दिन भर धूप में कंपनी के बाहर खड़े रहना पड़ा, पेट अक्सर कभी-कभी कुछ ऐसे सवाल पूछ लेता है जिसका चाह कर भी हमारे पास उत्तर नहीं होता, बस ऐसे ही एक सवाल के चलते मां कंपनी के बाहर दिनभर मेरी नौकरी के लिए गुजारिश करती रही, आखिरी में मुझे काम मिल गया.'

'शुरुआत में बहुत मुश्किलें होती थी, छोटे-छोटे हाथों से बड़ी मशीनों को चलाने में, ऐसा लगता जैसे पहाड़ काट कर लाना हो, ये सब कुछ रिस्क वाला काम होता था.' एक दिन हुआ भी ठीक ऐसा ही मारूफ का हाथ मशीन के अंदर फंस गया और वो एक बड़ी दुर्घटना से बच गया, हाथ कट्टे हुए बचने के बाद एक सीरियस चोट ने मारूफ को घेर लिया, 'चोट के बावजूद आराम नहीं कर सकता था, माँ की गरीबी जो दूर करनी थी. कुछ दिन बीते, हाथ ठीक होने से पहले काम पर लौट आया, जी तोड़ मेहनत करता हूँ. देखा नहीं जाता माँ का सुबह काम पर जाना और रात को लौटना, वो बहुत थक जाती है, माँ की गरीबी दूर करना चाहता हूं, अभी कंपनी में 3 टाइम का खाना मिल जाता है, कुछ महीने बाद 1500 टाका एक महीने का मिलेगा.' 

"पैदा होने के कुछ समय बाद 
उसने मशीनों से लड़ना शुरू कर दिया 
माँ की गरीबी दूर करने का ख्वाब लेकर 
वो ख्वाहिशों को भटकने नहीं देता खुद के पास
कुछ ऐसा ही है मारूफ..."

कहानी खत्म नहीं हुई, मारूफ हर मिनट एक नई कहानी कहता है, उसकी ज़िन्दगी कहानियों की एक मोटी किताब है जो वक़्त के साथ और मोटी हो जाएगी. मारूफ ने बस इतना ही कहा, वो कहना तो बहुत कुछ चाहता होगा लेकिन शायद छोटी उम्र में सब कुछ ज़ाहिर करना आसान नहीं होता, लेकिन फिर भी मारूफ की हंसी में कुछ तो ऐसा है जो उसको समझने को मजबूर करता है....

(GMB Akash की फेसबुक वाला से साभार)

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