Birthday Special : आला रे आला....... सचिन आला

Birthday Special : आला रे आला....... सचिन आला
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क्रिकेट भारतीय लोगों के लिए महज एक खेल नहीं है बल्कि इस खेल के साथ उनकी भावनाएं जुड़ी हुई है। इस खेल को जिया जाता है, पूजा जाता है और अगर इस खेल के भगवान की बात करें तो निःसंदेह एक ही नाम सभी के जहन में आता है और वो नाम है सचिन तेंदुलकर। एक ऐसा खिलाड़ी जिसके मैदान पर आते ही पूरा स्टेडियम सचिन .... सचिन के शोर से गूँज जाता था। ना जाने कितने रिकॉर्ड धराशायी कर नए रिकॉर्डों की झड़ी लगाने वाले सचिन ने जब करियर की शुरुआत की थी तब भी नम्र थे और क्रिकेट में भगवान का दर्जा पाने के बाद भी नम्र बने रहे। एक ऐसा खिलाड़ी जिसके मुरीद उनके प्रतिद्वंदी भी हैं। क्रिकेट के सर्वकालिक महान बल्लेबाज सर डॉन ब्रैडमैन ने सचिन की बल्लेबाजी को देखकर कहा था कि यह लड़का मेरे जैसा खेलता है। इतने बड़े करियर में सचिन का विवाद से पाला कभी नहीं पड़ा।

उनकी दीवानगी लोगों पर इस कदर हावी थी कि टीवी पर मैच देखने वाले लोग भी सिर्फ सचिन की बैटिंग देखते थे और सचिन के आउट होने के बाद टीवी सेट बंद कर दिए जाते थे। राह चलते लोग सिर्फ यही पूछते थे की सचिन टिका हुआ है ना। भारत की हार या जीत का फैंसला लोग सचिन के आउट या नॉट आउट रहने से ही कर लिया करते थे। उनके आंकड़ों के बारे में तो पुरी दुनिया जानती है इसलिए हम आज आंकड़ों के बारे में बात नहीं करेंगे बल्कि आज इस मास्टर ब्लास्टर के जन्मदिन पर हम उनके करियर, निजी ज़िन्दगी और जानी-अनजानी बातों के बारे में बात करेंगे।

राजापुर के मराठी ब्राह्मण परिवार में जन्मे सचिन का नाम उनके पिता रमेश तेंदुलकर ने अपने चहेते संगीतकार सचिन देव बर्मन के नाम पर रखा था। बचपन से ही क्रिकेट के प्रति उनका गहरा लगाव था। कहते हैं कि पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं। उनके बड़े भाई अजीत तेंदुलकर ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें क्रिकेट खेलने के लिये प्रोत्साहित किया था। सचिन के गुरु रमाकांत आचरेकर ने ही उन्हें क्रिकेट की बारीकियों से अवगत करवाया था। 1988 में स्कूल के एक हॅरिस शील्ड मैच के दौरान साथी बल्लेबाज विनोद कांबली के साथ सचिन ने ऐतिहासिक 664 रनों की अविजित साझेदारी की। सचिन ने इस मैच में तिहरा शतक लगाया था। इस पारी के बाद सचिन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और 14 साल की उम्र में ही मुंबई टीम में चुन लिए गए थे।

भारत और पाकिस्तान खेल के मैदान पर भी चीर प्रतिद्वंदी रहे हैं और सचिन ने अपना अंतर्राष्ट्रीय करियर ही पाकिस्तान के खिलाफ कराची में शुरू किया था। महज 16 साल की उम्र में सचिन ने कराची के नेशनल स्टेडियम में अपना पहला टेस्ट मैच खेलते हुए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कदम रखा। कृष्णामचारी श्रीकांत की कप्तानी में खेले इस मैच में सचिन का सामना उस दौर के दुनिया के सबसे तेज गेंदबाजों वकार यूनुस, वसीम अकरम और इमरान खान से हुआ। पहली पारी में सचिन छठे नंबर पर मनोज प्रभाकर के बाद बल्लेबाजी करने उतरे और 28 गेंदों में 2 चौकों की सहायता से 15 रन बनाए। इसी सीरीज के दौरान सियालकोट में खेले गए चौथे टेस्ट मैच में वकार द्वारा फेंके गए एक बाउंसर पर सचिन को चोट लगी और उनकी नाक से खून बहने लगा, किंतु वे मैदान पर डटे रहे और टीम के लिए उपयोगी पारी खेली। छोटी सी उम्र में इतनी हिम्मत और लगन देखकर उस वक्त पाकिस्तानी खिलाड़ी भी बेहद प्रभावित हुए थे।

सचिन संघर्षों से ऊपर उठे। वह अपने पुराने दिन नहीं भूले। कला नगर में रहते थे। सुबह के सेशन में प्रैक्टिस करने बस से शिवाजी पार्क आते थे। एक जोड़ी कपड़े रहते थे। जल्दी जल्दी जाकर धोते थे, सुखाते थे, शाम को फिर आते थे। दो जोड़ी नहीं पहनते थे। बस एक ही तकलीफ रहती थी, फील्डिंग के वक्त जब जेब में हाथ जाता था तो जेबें गीली रहती थीं। वे जल्दी नहीं सूख पाती थीं। उन्हें ये सब आज भी याद है ये बड़ी चीज है।

पाकिस्तान के खिलाफ करियर का आगाज करते वक्त जब सचिन पहली बार भारतीय टीम के लिए मैदान पर फील्डिंग करने उतरे। जिस दौरान एक ऐसा वाक्या भी घटा कि एक दर्शक मैदान पर आकर भारतीय खिलाड़ियों के खिलाफ अपना रोष प्रकट करने लगा। कहा यहां तक भी जाता है कि उस दौरान उसने तत्कालीन कप्तान श्रीकांत की कमीज़ की जेब भी फाड़ दी थी। इस मौके पर 16 साल के सचिन थोड़ा सहम गए थे और वो ये सोचकर तैयार थे कि अगर वो शख्स उनके पास आया तो वो ड्रेसिंग रूम की तरफ भाग जाएंगे।

मैच के एक दो दिन पहले सचिन लोगों से मिलना जुलना बंद कर देते थे। फोन पर भी किसी से बात नहीं करते थे और मैच के बाद ही बात करते थे। मैच के पहले वो किसी भी कीमत पर अपना ध्यान भंग नहीं होने देते थे। वह कहते हैं कि जिसने गेम के साथ धोखा दिया, वह कभी नहीं चले।

सचिन जब रमाकांत सर के साथ अभ्यास करते थे तब उनके कोच स्टम्प पर एक रुपये का सिक्का रख देते और जो गेंदबाज सचिन को आउट करता, वह सिक्का उसी को मिलता था और यदि सचिन बिना आउट हुए पूरे समय बल्लेबाजी करने में सफल हो जाते, तो ये सिक्का उनका हो जाता। सचिन ने ऐसे 13 सिक्के जीते थे जो आज भी उन्होंने संभाल कर रखे हैं।

अपनी बल्लेबाजी से गेंदबाजों के होश उड़ाने वाले सचिन करियर की शुरुआत में तेज गेंदबाज बनना चाहते थे। तेज गेंदबाज बनने के लिये उन्होंने एम०आर०एफ० पेस फाउण्डेशन के अभ्यास कार्यक्रम में शिरकत की पर वहाँ तेज गेंदबाजी के कोच डेनिस लिली ने उन्हें पूर्ण रूप से अपनी बल्लेबाजी पर ध्यान केन्द्रित करने को कहा। हालाँकि इसके बाद भी करियर के दौरान सचिन ने काफी स्पिन गेंदबाजी जरूर की। सचिन तेंदुलकर क्रिकेट में बल्लेबाज़ी दायें हाथ से करते हैं किन्तु लिखते बाये हाथ से हैं। वे नियमित तौर पर बायें हाथ से गेंद फेंकने का अभ्यास करते थे।

क्रिकेट के प्रति उनके लगाव का अन्दाज़ इसी घटना से लगाया जा सकता है कि विश्व कप के दौरान जब उनके पिताजी का निधन हुआ उसकी सूचना मिलते ही वह घर आये, पिता की अन्त्येष्टि में शामिल हुए और वापस लौट गये। उसके बाद सचिन अगले मैच में खेलने उतरे और शतक ठोककर अपने दिवंगत पिता को श्रद्धांजलि दी।

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