घर से बाहर रहने पर सबसे ज्यादा चीज अगर कोई मिस करता है तो वह है मां के हाथ का बना खाना. चंडीगढ़ में पीजी में रहने के दौरान राधिका अरोड़ा भी अपने मां के हाथ का बना खाना मिस करती थीं. पीजी में जो खाना मिलता, वो उन्हें वेस्वाद लगता था. कई दफा तो उन्हें खाना बाहर से मंगाना पड़ता था. राधिका चंडीगढ़ ग्रुप ऑफ कॉलेज से एमबीए करने के बाद रिलायंस जियो के लिए बतौर एचआर की नौकरी करने लगी थीं. धीरे-धीरे मां के हाथ के खाने की याद उन्हें इतनी सताने लगी कि उन्होंने नौकरी छोड़कर खाने का ठेला लगाने की ही ठान ली.
ठेला लगाने के लिए भी उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ी. काफी प्रयास के बाद प्रशासन से तो अनुमति मिल गई. उनका विरोध करने वाले दूसरे ठेले वाले भी शांत हो गए. लेकिन घरवालों को अब भी यह मंजूर नहीं था. राधिका ने ठेला खोलकर ही दम लिया और अपने ठेले का नाम रखा 'मां का प्यार'. राधिका ने इस काम के लिए कुक भी हायर किया. शुरू में 70 थाली खाना तैयार करती थीं. लेकिन उनके खाने का स्वाद लोगों के मुंह ऐसा कि लगा कि जिसने एक बार खाया, वह बार बार आया.
राधिका का काम इतना चल निकला कि अब वह चंडीगढ़ में खाने के दो ठेले लगाती हैं. एक इंडस्ट्रियल एरिया मोहाली में और दूसरा वीआईपी रोड जीरकपुर में. उनकी पांच लोगों की टीम है. राधिका के इस काम में उनके दोस्तों ने भी खूब सपोर्ट किया. राधिका की सफलता के बाद घरवालों के विचार भी बदल गए हैं और वे अब बेटी के फैसले को सही मानते हैं. राधिका के पिता बिजनेसमैन हैं, लेकिन बेटी ने अलग से अपना कारोबार खड़ा करके साबित कर दिया कि वह भी उनकी बेटी है.
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