23 साल पुराने मुक़दमे में मेधा पाटकर को जमानत, गुजरात के सरदार सरोवर डैम से जुड़ा है मामला

23 साल पुराने मुक़दमे में मेधा पाटकर को जमानत, गुजरात के सरदार सरोवर डैम से जुड़ा है मामला
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नई दिल्ली: दिल्ली की साकेत कोर्ट ने आज सोमवार (29 जुलाई) को राष्ट्रीय राजधानी के उपराज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा दायर आपराधिक मानहानि मामले में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को सुनाई गई सजा को निलंबित कर दिया। अदालत ने मेधा पाटकर को भी 25,000 रुपये के जमानत बांड पर जमानत दे दी। अदालत ने दिल्ली के उपराज्यपाल को नोटिस जारी कर 4 सितंबर को मामले पर जवाब मांगा है। यह घटना मेधा पाटकर द्वारा मामले में अपनी सजा को चुनौती देने के लिए सत्र न्यायालय में याचिका दायर करने के दो दिन बाद हुई है।

रिपोर्ट के अनुसार, 1 जुलाई को दिल्ली की एक कोर्ट ने मेधा पाटकर को पांच महीने की जेल की सज़ा सुनाई और उन्हें वीके सक्सेना को 10 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का निर्देश दिया था। आदेश सुनाते हुए अदालत ने कहा कि पाटकर की उम्र, बीमारी और सजा की अवधि को देखते हुए यह "कोई कड़ी सज़ा नहीं है।" हालांकि, पाटकर को अपील दायर करने के लिए समय देने हेतु सजा को 1 अगस्त तक निलंबित कर दिया गया था। बता दें कि, मानहानि का यह मामला जनवरी 2001 का है, जब पाटकर ने 25 नवंबर 2000 को “देशभक्त का सच्चा चेहरा” शीर्षक से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी। इसमें उन्होंने उस समय अहमदाबाद स्थित एक NGO के प्रमुख वीके सक्सेना को “कायर” कहा था और उन पर हवाला लेनदेन में शामिल होने का आरोप लगाया था।

उल्लेखनीय है कि उस समय सक्सेना का NGO सरदार सरोवर परियोजना को पूरा करने में सक्रिय रूप से सहयोग कर रहा था, जबकि पाटकर बांध के निर्माण के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रही थीं। इसके बाद, सक्सेना ने पाटकर के खिलाफ दो मामले दर्ज किए, जिसमें कथित तौर पर एक टीवी चैनल पर उनके बारे में अपमानजनक टिप्पणी करने और मानहानिकारक प्रेस बयान जारी करने का आरोप लगाया गया। सक्सेना के वकील के अनुसार, पाटकर के प्रेस नोट में लगाए गए आरोपों ने उन्हें पाखंडी के रूप में चित्रित किया और उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया।

मई 2024 में, अदालत ने पाटकर को इस मामले में दोषी ठहराया और कहा कि उनकी “कार्रवाई जानबूझकर, दुर्भावनापूर्ण थी और सक्सेना की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के उद्देश्य से की गई थी”। इसने यह भी देखा कि कार्यकर्ता द्वारा दिए गए बयान मानहानिकारक थे और “नकारात्मक धारणा” को भड़काते थे। अदालत ने यह भी कहा कि पाटकर ने सक्सेना के आरोपों का खंडन करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं किया।

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