नई दिल्ली: बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी एकजुटता की मीटिंग से पहले अल्टीमेटम देने वाले दिल्ली के सीएम और आम आदमी पार्टी (AAP) सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल को कांग्रेस ने जवाब दे दिया है। अध्यादेश पर कांग्रेस द्वारा समर्थन नहीं दिए जाने पर बहिष्कार का मन बना चुकी आम आदमी पार्टी (AAP) को कांग्रेस ने अभी प्रतीक्षा करने के लिए कहा है। कांग्रेस सुप्रीमो मल्लिकार्जुन खड़गे ने 'हां या ना' में जवाब देने से बचते हुए कहा है कि संसद सत्र के दौरान पार्टी इस पर कोई निर्णय लेगी। खड़गे के जवाब के बाद अब यह देखना दिलचस्प हो गया है कि केजरीवाल क्या स्टैंड लेते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, पटना में विपक्षी दलों की मीटिंग में शामिल होने के लिए दिल्ली से निकलते वक़्त खड़गे ने कहा कि अध्यादेश के समर्थन या विरोध का फैसला बाहर नहीं होता है। उन्होंने कहा कि संसद सत्र के दौरान सभी पार्टियां मिलकर अजेंडा निर्धारित करेंगी। उन्होंने यह भी कहा कि यह बैठक भाजपा को मात देने की रणनीति बनाने के लिए है। खड़गे ने कहा कि, 'एक होकर इस भाजपा सरकार को हटाने का हमारा मकसद है। इसके लिए सभी लोगों को मिलकर कार्य करना है। उसके बारे में हम पहले से प्रयास कर रहे हैं। राहुल गांधी जी ने शुरू किया था, उसी का हिस्सा है कि पटना में फिर से एक बार हम सभी लोग एकजुट हो रहे हैं।'
यह सवाल किए जाने पर कि केजरीवाल ने कहा है कि कांग्रेस ने अध्यादेश पर समर्थन नहीं किया तो वह बैठक का बहिष्कार कर सकते हैं, खड़गे ने कहा कि, 'शायद वह खुद भी जानते हैं कि अध्यादेश के समर्थन या विरोध का निर्णय बाहर नहीं होता, यह संसद में होता है। जब संसद सत्र आरम्भ होगा, तो उससे पहले सभी पार्टी के लोग मिलकर जो हमेशा तय करते हैं अजेंडा, कि किसका समर्थन करना है, किसको स्वीकार करना है, यह फैसला लेंगे। उनके पार्टी के नेता भी सर्वदलीय मीटिंग में आते हैं। देखेंगे कि क्यों इतना बाहर प्रचार हो रहा है, मुझे पता नहीं है। 15-20 पार्टियां मिलकर फैसला लेती हैं कि सदन में किस चीज का विरोध करना चाहिए, किस चीज को स्वीकार करना चाहिए। अभी कहने की जगह हम तब फैसला लेंगे जब संसद सत्र की शुरुआत होगी।'
अध्यादेश का विरोध क्यों कर रहे हैं केजरीवाल, कांग्रेस ने बताया था कारण :-
बता दें कि, 11 मई के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसफर-पोस्टिंग सहित सेवा मामलों से जुड़े सभी कामकाज पर दिल्ली सरकार का कंट्रोल बताया था। वहीं, जमीन, पुलिस, और पब्लिक ऑर्डर के अलावा सभी विभागों के अफसरों पर केंद्र सरकार को कंट्रोल दिया गया था। ये पॉवर मिलते ही, केजरीवाल सरकार ने दिल्ली सचिवालय में स्पेशल सेक्रेट्री विजिलेंस के आधिकारिक चैंबर 403 और 404 को सील करने का फरमान सुना दिया और विजिलेंस अधिकारी राजशेखर को उनके पद से हटा दिया था। लेकिन, केंद्र सरकार अध्यादेश ले आई और फिर राजशेखर को अपना पद वापस मिल गया। इसके बाद पता चला कि, दिल्ली शराब घोटाला और सीएम केजरीवाल के बंगले पर खर्च हुए करोड़ों रुपए की जांच राजशेखर ही कर रहे थे।
राजशेखर को पद से हटाए जाने के बाद उनके दफ्तर में रखी फाइलों से छेड़छाड़ किए जाने की बात भी सामने आई थी। एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमे राजशेखर के दफ्तर में आधी रात को 2-3 लोग फाइलें खंगालते हुए देखे गए थे। ऐसे में कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित और अजय माकन द्वारा कहा जा रहा है कि, केजरीवाल इस अध्यादेश का विरोध दिल्ली की जनता के लिए नहीं, बल्कि खुद को बचाने के लिए कर रहे हैं। अजय माकन का तो यहाँ तक कहना है कि, अध्यादेश पर केजरीवाल का साथ देना यानी नेहरू, आंबेडकर, सरदार पटेल जैसे लोगों के विचारों का विरोध करना है, जिन्होंने कहा था कि, दिल्ली की शक्तियां केंद्र के हाथों में ही होनी चाहिए। माकन तर्क देते हैं कि, कांग्रेस सरकार के समय मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भी वह शक्तियां नहीं मिली थी, जो केजरीवाल मांग रहे हैं। साथ ही इन दोनों नेताओं ने कांग्रेस से केजरीवाल का साथ न देने की अपील की है।
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