कोच्ची: केरल उच्च न्यायालय ने मंगलवार को माता-पिता या नागरिकों के कानूनी रक्षक की भूमिका निभाते हुए एक मानसिक रूप से विकलांग दुष्कर्म पीड़िता के 15 सप्ताह से अधिक के गर्भ को गिराने की अनुमति दे दी है. अदालत का कहना है कि पीड़िता स्वयं फैसला लेने में अक्षम है और उसके लिए यही अच्छा फैसला है. उच्च न्यायालय ने सरकारी मानसिक स्वास्थ्य केंद्र और तिरुवनंतपुरम में श्री एविटोम थिरुनल अस्पताल को गर्भपात कराने की इजाजत दी है.
इसके साथ ही अदालत ने इन अस्पतालों को भ्रूण के टिशू लेने और DNN जांच के लिए इसे बनाए रखने का भी निर्देश दिया है. क्योंकि यह मानसिक रूप से विकलांग महिला दुष्कर्म पीड़िता है. जस्टिस पीबी सुरेश कुमार ने एक मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर यह फैसला लिया है. जिसने महिला की जांच के बाद कहा था कि हालांकि गर्भावस्था जारी रखने से दुष्कर्म पीड़िता के जीवन को कोई खतरा नहीं है, किन्तु मानसिक रूप से विकलांग बलात्कार पीड़िता की दवा चल रहा है. जो दोनों के लिए खतरा भरा हो सकता है. साथ ही मेडिकल बोर्ड द्वारा जारी किए गए एक प्रमाण पत्र में यह भी संकेत दिया गया है कि पीड़िता फैसला लेने या अपनी राय बताने में असमर्थ थी.
जज ने कहा कि, ‘इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि केस में शामिल महिला एक दुष्कर्म पीड़िता है और मेडिकल बोर्ड की राय पर विचार करते हुए, मेरा विचार है कि इस तरह के मामले में गर्भावस्था को ख़त्म करना ही संबंधित व्यक्ति के सर्वोत्तम हित में है.’
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