चंडीगढ़: हरियाणा के मेवात में हिंदुओं द्वारा निकाली गई ब्रजमंडल जलाभिषेक यात्रा पर सोमवार (31 जुलाई) पर कट्टरपंथियों की भीड़ ने अचानक हमला कर दिया था। इस हिंसा में तीन लोगों की हत्या कर दी गई है, जबकि 60 से अधिक लोग जख्मी हैं, जिसमे कई पुलिसकर्मी भी शामिल हैं। 80 गाड़ियों को आग लगा दी गई। तनाव के मद्देनज़र इंटरनेट सेवा बंद करके धारा 144 लागू कर दी गई है।
रिपोर्ट के अनुसार, हिंसा के दौरान लगभग 3000 हिंदू महिला एवं पुरुष बंधक जैसी स्थिति में फँसे हुए थे, जो सावन सोमवार को प्राचीन शिव मंदिर में जलाभिषेक करने के लिए पहुंचे थे। हालाँकि, ADG ममता सिंह की अगुवाई में पुलिस ने सभी लोगों को दंगाइयों से बचाते हुए सकुशल निकाल लिया गया है। रेस्क्यू किए गए लोगों ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। कुछ लोगों का कहना है कि Ak-47 से उन पर फायरिंग की गई है और 14 वर्ष के बच्चे तक हथियार चला रहे थे।
वहीं, इतना उत्पात मचाने के बाद भी कट्टरपंथी, नूहं में हुई इस हिंसा के लिए बजरंग दल से जुड़े गौ रक्षक मोहित यादव उर्फ मोनू मानेसर को जिम्मेदार ठहराने में जुटे हुए हैं। सोशल मीडिया से लेकर नेताओं तक हिंसा के लिए मोनू मानेसर को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) चीफ और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी भी हिंसा के लिए मोनू मानेसर पर भी दोष मढ़ रहे हैं। जबकि मोनू न तो हिंसा के पहले नूह गया था और न ही बाद में।हरियाणा पुलिस भी कह चुकी है कि, मोनू नूंह शोभायात्रा में शामिल नहीं था और इसीलिए FIR में उसका नाम नहीं है। एक रिपोर्ट के अनुसार, मोनू ने एक वीडियो जारी कर लोगों से VHP की जलाभिषेक यात्रा में शामिल होने की अपील जरूर की थी, लेकिन तनाव न फैले इसलिए वो खुद यात्रा में शामिल नहीं हुए थे। मगर, कट्टरपंथियों ने फिर भी हिंसा की और अब मोनू मानेसर पर ही आरोप लगा रहे हैं।
सोशल मीडिया पर मोनू मानेसर के एक पुराने वीडियो का इस्तेमाल कर कट्टरपंथी ये दावा कर रहे हैं कि सावन महीने के सोमवार को हुई जलाभिषेक यात्रा में मोनू मानेसर मौजूद था और हिंसा उसके कारण ही हुई। फेसबुक यूजर साहिद डेमरोट ने 31 जुलाई 2023 को एक वीडियो पोस्ट किया। इस वीडियो में साहिद ने उन हैशटैग का उपयोग किया, जिसके इस्तेमाल मोनू मानेसर और उसकी टीम किया करते हैं है। हारुन खान नामक एक यूजर ने लिखा कि, 'जुनैद और नासिर की हत्या का आरोपित मोनू मानेसर आज 31 जुलाई 2023 को मेवात यात्रा में मौजूद है।' हारून खान ने मोनू के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए राजस्थान और हरियाणा पुलिस को टैग भी किया। हारून ने मेवात के नासिर ज़खोपुरिया की एक फेसबुक पोस्ट का स्क्रीनशॉट भी साझा किया किया था। हालाँकि, अब पोस्ट भी डिलीट कर दिया गया है।
ट्विटर यूजर x_aliways ने अपने ट्वीट में दावा किया कि मोनू रैली में मौजूद था और उसने सावन सोमवार को प्राचीन शिव मंदिर में जल चढ़ाने के लिए निकाली गई यात्रा को ‘मुस्लिम विरोधी’ रैली बताया। उसने भी मोनू के एक पुराने वीडियो का स्क्रीनशॉट शेयर किया। ट्विटर यूजर 'द मुस्लिम' ने भी इसी नैरेटिव को आगे बढ़ाते हुए दावा किया कि मानेसर रैली में मौजूद था। द मुस्लिम ने मोनू मानेसर पर दंगे कराने का आरोप लगाया।
चूँकि विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने पहले ही स्पष्ट रूप से बता दिया था कि मोनू मानेसर जुलूस में मौजूद था। कट्टरपंथी जिस वीडियो को शेयर कर मोनू मानेसर पर हिंसा का इल्जाम लगा रहे हैं, वह वीडियो पिछले साल का है। 2 अक्टूबर 2022 को श्रीकांत ने यह वीडियो पोस्ट किया है, जो बजरंग दल से जुड़े हुए हैं। ये तस्वीरें मोनू मानेसर को गौरक्षा प्रमुख बनाए जाने का जश्न मनाने के लिए आयोजित किए गए एक समारोह की थीं, जिसे बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने आयोजित किया था।
हालाँकि, कट्टरपंथियों ने अपने चिरपरिचित पैटर्न में हिंसा करने के बाद खुद को विक्टिम बताने के लिए पुराना वीडियो फैलाकर मोनू पर दोष मढ़ना शुरू कर दिया। जबकि, यात्रा निकालने वाले VHP, हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज भी यही कह रहे हैं कि, मोनू रैली में मौजूद नहीं था, और न ही वो हिंसा के पहले या बाद में मेवात आया। वहीं, दंगाइयों की भीड़ से बचाए गए लोगों का कहना है कि, वहां फायरिंग भी हो रही थी और 14-14 साल के बच्चे तक हथियार चला रहे थे।
कट्टरपंथियों का हिंसा का पुराना पैटर्न:-
बता दें कि, यह पहली बार नहीं है, जब कट्टरपंथियों ने धार्मिक जुलुस को अपनी नफरत का निशाना बनाया हो। दिल्ली, जहांगीरपुरी, बंगाल में रामनवमी यात्राओं पर हमले हम देख ही चुके हैं। यह भी गौर करने वाली बात है कि, हाल ही में देश में कई जगहों पर मुहर्रम का जुलुस भी निकला, लेकिन कहीं से भी इस तरह की हिंसा की खबर नहीं आई, उनपर कोई हमला नहीं हुआ। वहीं, बंगाल में जब रामनवमी पर पुलिस द्वारा तय किए गए रुट से शोभायात्रा निकाली गई, तब भी मुस्लिम बहुल इलाके में शोभायात्रा पर हमला हुआ था। बाद में कट्टरपंथियों ने खुद को विक्टिम बताते हुए आरोप लगा दिया कि, रैली में भड़काऊ नारे लगाए गए थे, जिसके कारण हिंसा हुई। अब ये सोचने वाली बात है कि, वो भड़काऊ नारे, रैली के साथ चल रही पुलिस को सुनाई नहीं दिए, केवल कट्टरपंथियों को सुनाई दिए और उन्होंने घरों की छतों से पत्थर और कांच की बोतलें फेंकना शुरू कर दी।
कोलकाता हाई कोर्ट तक इस हिंसा की सुनवाई करते हुए कह चुका है कि, हिंसा की तैयारी पहले से कर ली गई थी और छतों पर पत्थर, बोतलें जमा कर लिए गए थे। वहीं, जब कोलकाता हाई कोर्ट ने हिंसा की जांच NIA को सौंपी, तो बंगाल पुलिस ने जाँच एजेंसी को दस्तावेज़ ही नहीं सौंपे। सीएम ममता का कहना था कि, यात्रा मुस्लिम इलाके में घुसी इसलिए हिंसा हुई। जबकि, यात्रा का रुट तो बंगाल पुलिस ने ही तय किया था, उसी रास्ते से यात्रा निकली। लेकिन, उस हिंसा में भी दंगाइयों पर कार्रवाई नहीं हुई और दोष उल्टा यात्रा निकालने वालों पर ही मढ़ दिया गया, मेवात में भी यही किया जा रहा है।
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