नई दिल्ली : 'मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों - ज्यों दवा की' यह उक्ति महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) पर पूरी तरह फिट नजर आ रही है, क्योंकि 8 नवम्बर को पीएम मोदी ने नोटबन्दी के रूप में जो कड़वी दवा दी थी, उसके बाद से मनरेगा में 23 प्रतिशत रोजगार घट गया है.
आपको बता दें कि नोटबंदी के कारण 23.4 लाख लोगों को खाली हाथ लौटना पड़ा,यह संख्या अक्टूबर से दोगुनी है. यदि इसकी पिछले साल नवंबर से तुलना की जाए तो मनरेगा के तहत मिलने वाले काम में 55 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है.
सच तो यह है कि नोटबन्दी के रूप में ग्रामीण क्षेत्र के गरीब , बेसहारा और मनरेगा पर निर्भर लोगों को एक ऐसा अनचाहा दर्द मिला है जो उन्हें सहन करना पड़ रहा है.उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के मंगू राम मजदूर ने कहा कि शुरुआत के काफी दिन हमने उधार लेकर काम चलाया, लेकिन अब नोटबंदी के पांचवे हफ्ते हालात बद से बदतर होते दिख रहे हैं. वहीं झारखंड के सिंहभूमि जिले की सुनिया लगूरी ने अपना तकलीफ व्यक्त करते हुए कहा कि अगर मनरेगा के तहत काम उपलब्ध रहता तो हमें कम से कम कुछ राहत मिलती, अभी हम थोड़ी-बहुत मजदूरी 50 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से कर रहे हैं. ज्यादातर वक्त खाली बैठे ही बीत रहा है.
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