लखनऊ: हाल ही में उत्तर प्रदेश के एक नाबालिग लड़के ने गंभीर रूप से बीमार अपने पिता को लिवर डोनेट करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा रुख किया था। मगर, इस मामले पर शीर्ष अदालत का आदेश आता, नाबालिग के पिता ने दम तोड़ दिया। इस संबंध में कोर्ट को बुधवार को सूचित किया गया। इसके बाद न्यायमूर्ति कौल और न्यायमूर्ति अभय ओका की बेंच ने मामले की कार्यवाही स्थगित करने का निर्णय लिया है।
यह मामला इससे पहले शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित के संज्ञान में लाया गया था, जिन्होंने मामले की तत्परता को समझते हुए इसे लिस्ट करने के निर्देश दिए थे। अदालत ने कहा था कि बेटे ने स्वेच्छा से अपना लिवर पिता को दान करने की इच्छा जाहिर की है। मगर, उसके नाबालिग होने के कारण संबंधित कानून के तहत ऐसा करने की अनुमति नहीं है। कोर्ट ने इस मामले में यूपी सरकार को नोटिस जारी करते हुए राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी को सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद रहने के लिए कहा था।
इस बीच कोर्ट ने कहा था कि लिवर दान किया जा सकता है या नहीं, यह देखने के लिए संबंधित अस्पताल में नाबालिग का प्रारंभिक परीक्षण किया जाना चाहिए। रिपोर्ट्स के अनुसार, इस मामले में नाबालिग की मां भी लिवर डोनेट करने को तैयार थी, मगर मेडिकल टेस्ट में वह लिवर डोनेट करने के लिए फिट नहीं पाई गईं। इस मामले से यह बहस भी शुरू हो गई है कि क्या जीवित नाबालिगों को अंगदान की इजाजत दी जानी चाहिए या नहीं ? क्योंकि कानून के मुताबिक, कोई भी नाबालिग मौत से पहले अपने शरीर का कोई भी अंग या टिश्यू दान नहीं कर सकता।
बता दें कि 17 वर्षीय एक नाबालिग लड़के ने हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। नाबालिग ने याचिका में कहा था कि उसके पिता की हालत नाजुक है और उन्हें तुरंत लिवर ट्रांसप्लांट की आवश्यकता है। मैं अपने पिता को लिवर देना चाहता हूं। इसी को लेकर नाबालिग ने अदालत से अनुमति मांगी थी। लेकिन, जब तक अदालत सुनवाई पूरी कर फैसला सुनाती, तब तक नाबालिग के पिता ने दम तोड़ दिया।
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