मिर्ज़ा ग़ालिब का नाम सुनते ही कई खूबसूरत-सी शायरियां जहन में आ जाती हैं. आपको बता दें ग़ालिब साहब उर्दू के एक ऐसे शायर हैं जो किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. आज महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की 221वीं जयंती है. मिर्ज़ा ग़ालिब का असली नाम मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग खान था. भले ही बॉलीवुड और टेलीविजन पर उनके बारे में ज्यादा नहीं बताया है लेकिन फिर भी वो अपनी शायरियों के कारण देशभर में मशहूर हैं. उनकी जयंती के इस खास मौके पर हम आपके लिए आज ग़ालिब साहब के कुछ ऐसे शेर लेकर आए हैं जिसे पढ़ते ही आपका मन प्रसन्न हो जाएगा.
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
तुम सलामत रहो हजार बरस
हर बरस के हों दिन पचास हजार
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
इस मंदिर में जाने से थर-थर कांपने लगते हैं लोग, वजह जानकर रोंगटे खड़े हो जाएंगे