आप सभी को बता दें कि इस बार 15 जून यानी कल मिथुन संक्राति का पर्व मनाया जाएगा. वहीं इस दिन सूर्य मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे जिस कारण से इसे मिथुन संक्राति कहते है और सौर वर्ष के अनुसार सूर्य का राशि परिवर्तन को संक्रांति कहा जाता है. ऐसे में सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता उसा राशि की संक्राति कह लाता है और पूरे साल में 12 संक्रांति होती हैं क्योंकि हम माह की 14 या 15 तारीख के दिन संक्राति का पर्व मनाया जाता है. वहीं संक्रांति के दिन दान-दक्षिणा और पूजा-पाठ का विशेष महत्व महोता है और आज हम इस लेख में मिथुन संक्राति के दिन उड़ीसा में मनाए जाने वाले पर्व के बारे में बता रहें हैं.
आप सभी को बता दें कि उड़ीसा में यह पर्व संक्रांति के 4 दिन पहले से शुरू हो जाता है और इसी के साथ ही यह संक्रांति को इसलिए भी महत्व दिया जाता है क्योकि इसके बाद से ही वर्षा ऋतु का आगमन होता है. वहीं मिथुन संक्राति को कुछ लोग रज संक्रांति के नाम से पुकारते हैं और उड़ीसा में इस दिन को त्योहार के रुप में मनाया जाता है इसके साथ ही वहां पर इसे राजा परबा कहा जाता है. इसी के साथ ही इस पर्व के साथ ही पहली बारिश का स्वागत भी किया जाता है और इस दिन लोग राजा गीत भी गाते हैं जो यहां का लोक संगीत है. वहीं मिथुन संक्रांति के दिन भगवान सूर्य की पूजा करते हैं और यह पर्व चार दिन पहले से शुरू हो जाता है. वहीं इस पर्व में अविवाहित कन्याएं हमेशा ही बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं और इस पर्व के जरिये वे अच्छे वर का कामना के लिए व्रत करती है.
यह पर्व चार दिन का होता है और इस पर्व में पहले दिन को पहिली राजा, दूसरे दिन को मिथुन संक्रांति या राजा, तीसरे दिन को भू दाहा या बासी राजा और चौथे दिन को वसुमती स्नान कहा जाता है. कहते हैं इस पर्व का संबंध महिलाओं के मासिक धर्म के चार दिन और उनके शरीर के विकास के प्रतिक के रुप में 3 दिन भू देवि यानी धरती मां के मासिक धर्म वाले होते हैं जो कि पृथ्वी के विकास का प्रतिक माना जाता है. आपको बता दें कि इस पर्व के चौथे दिन धरती के स्नान का होता है जिसे वसुमती गढ़ुआ कहते हैं और इन दिनों में सिल बट्टा का उपयोग नही कर सकते.
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