नई दिल्ली: 'वन नेशन-वन इलेक्शन' के प्रस्ताव को मोदी कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद यह चर्चा का प्रमुख विषय बन गया है। इस योजना का उद्देश्य पूरे देश में एक ही समय पर लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और अन्य स्थानीय निकायों के चुनाव कराना है। इस प्रस्ताव के पीछे तर्क यह है कि इससे देशभर में चुनावों की बार-बार होने वाली प्रक्रिया से छुटकारा मिलेगा और सरकारी संसाधनों की बचत होगी।
कोविंद कमेटी की रिपोर्ट
इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया गया था, जिसने 'वन नेशन-वन इलेक्शन' की संभावनाओं का अध्ययन किया। इस समिति ने मार्च 2023 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। रिपोर्ट में कहा गया कि पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने चाहिए। समिति ने सुझाव दिया कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होने के बाद, 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव भी आयोजित किए जाने चाहिए, ताकि पूरे देश में एक निश्चित समय सीमा के भीतर सभी स्तरों के चुनाव संपन्न हो सकें।
समिति की सिफारिशें
कोविंद समिति ने अपनी रिपोर्ट में कई प्रमुख सिफारिशें की हैं, जो इस योजना को लागू करने के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही हैं। रिपोर्ट के अनुसार:
लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने चाहिए, ताकि केंद्र और राज्यों में सरकारें एक ही समय पर चुनी जा सकें।
स्थानीय निकाय चुनाव: लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बाद 100 दिनों के भीतर देशभर के स्थानीय निकायों (नगर निगम, पंचायत, आदि) के चुनाव भी कराए जाएं।
आर्थिक बचत: बार-बार चुनाव होने से सरकार और राजनीतिक दलों पर भारी आर्थिक बोझ पड़ता है। इस योजना के लागू होने से चुनावी खर्चों में भारी कमी आएगी।
प्रशासनिक स्थिरता: बार-बार चुनावों के कारण सरकारी योजनाओं और विकास कार्यों पर प्रभाव पड़ता है। एक साथ चुनाव होने से सरकारें अपने पूरे कार्यकाल में बिना किसी चुनावी बाधा के काम कर सकेंगी।
मौजूदा स्थिति
वर्तमान में, भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। हर राज्य की विधानसभा का कार्यकाल पांच साल का होता है, लेकिन राज्य विधानसभा भंग होने पर मध्यावधि चुनाव भी कराए जाते हैं। इसी तरह, लोकसभा के चुनाव हर पांच साल में होते हैं। इससे चुनावी प्रक्रिया लगभग हर साल चलती रहती है, जिसके कारण देश में विकास कार्य और नीतिगत निर्णयों पर चुनावों का प्रभाव पड़ता है।
प्रधानमंत्री मोदी की वकालत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लंबे समय से 'वन नेशन-वन इलेक्शन' की वकालत करते आए हैं। उनका मानना है कि इस प्रणाली से देश में राजनीतिक स्थिरता बढ़ेगी और सरकारी संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सकेगा। एक साक्षात्कार में पीएम मोदी ने कहा था, "चुनाव पूरे पांच साल नहीं चलते रहने चाहिए। चुनाव केवल तीन या चार महीने के लिए होने चाहिए और बाकी समय सरकारें जनता के लिए काम कर सकें। इससे चुनावी खर्चों में भी कमी आएगी और विकास कार्यों को गति मिलेगी।"
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा था कि बार-बार चुनावों से देश की आर्थिक स्थिति पर बोझ पड़ता है, क्योंकि चुनाव कराने के लिए भारी मात्रा में सरकारी संसाधन, सुरक्षा बल और प्रशासनिक अधिकारी तैनात किए जाते हैं। इसके अलावा, चुनावों के दौरान मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट लागू होने के कारण सरकारी नीतियों और योजनाओं पर भी अस्थायी रोक लग जाती है।
संभावित चुनौतियां
हालांकि 'वन नेशन-वन इलेक्शन' का विचार कई राजनीतिक दलों और विशेषज्ञों द्वारा सराहा गया है, लेकिन इसे लागू करना एक बड़ी चुनौती हो सकता है। कुछ प्रमुख चुनौतियां इस प्रकार हैं:
संविधान संशोधन: इस प्रणाली को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करना आवश्यक होगा, क्योंकि वर्तमान संविधान के तहत लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग समय पर कराने का प्रावधान है।
राज्यों की सहमति: हर राज्य की राजनीतिक स्थिति अलग होती है, और सभी राज्यों के लिए एक साथ चुनाव कराना आसान नहीं होगा। राज्यों की सहमति और चुनावी तिथियों का समन्वय एक बड़ी चुनौती हो सकती है।
अचानक चुनावों की स्थिति: अगर किसी कारणवश लोकसभा या राज्य विधानसभा समय से पहले भंग हो जाती है, तो इस स्थिति में फिर से एक साथ चुनाव कराना संभव नहीं हो पाएगा।
'वन नेशन-वन इलेक्शन' का प्रस्ताव देश की चुनावी प्रक्रिया को एक नया रूप देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे जहां एक ओर चुनावी खर्चों में कमी आएगी, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक स्थिरता और प्रशासनिक कुशलता में भी सुधार की संभावना है। हालांकि, इसे लागू करने के लिए कई कानूनी और संवैधानिक बाधाओं का समाधान करना आवश्यक होगा।
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