मोदी सरकार में केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में एक अहम फैसला लिया गया है. जिसके तहत भारत और बेल्जियम के बीच प्रस्तावित प्रत्यर्पण संधि पर मुहर लगा दी गई है. इस संधि के अमल में आने से दोनों देश अपने यहां अपराध करके फरार हुए भगोड़ों को एक-दूसरे को सौंप सकेंगे. कैबिनेट ने यह निर्णय शुक्रवार को लिया, शनिवार को इसकी घोषणा हुई है.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि प्रत्यर्पण संधि में उन्हीं अपराधों के आरोपियों को लिया-दिया जाता है जिनके लिए कानून में एक साल या इससे अधिक की सजा का प्रावधान होता है. संधि में शामिल देश की अदालत प्रत्यर्पण की अर्जी पर विचार करने के बाद फैसला लेती है कि कहीं मामला फर्जी और आरोपित व्यक्ति के प्रति दुराग्रह वाला तो नहीं है. साथ ही मानवाधिकारों का भी खयाल रखा जाता है.
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इस महत्वपूर्ण संधि पर मुहर लगने के बाद राजनीतिक मामलों में आरोपित व्यक्ति के प्रत्यर्पण की अर्जी को भी अस्वीकार किया जा सकता है. भारत के साथ बेल्जियम की प्रत्यर्पण की संधि 1901 में तब लागू हुई थी जब भारत ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा था. इसके बाद 1958 में इसका नवीनीकरण किया गया, जो अभी तक प्रभावी है. लेकिन अब कुछ अपराधों को बढ़ाते हुए इसे नया रूप दिया गया है.
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