नई दिल्ली: रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग के बीच वहाँ फँसे भारतीय छात्र-छात्राओं की वतन वापसी के लिए भारत सरकार निरंतर कोशिश कर रही है। यूक्रेन में लगभग 18000 भारतीय छात्र हैं, जिन्हें स्वदेश लाया जा रहा है। इसके लिए केंद्र सरकार ने केंद्रीय मंत्रियों की टीमें भी गठित की गई हैं, जो यूक्रेन से बॉर्डर शेयर करने वाले देशों में जाकर यूक्रेन से आने वाले छात्रों को भारत लाने की कोशिश कर रहीं हैं। खबर है कि यूक्रेन से आने वाले इन छात्रों को भारत के मेडिकल कॉलेजों में दाखिला देने की भी सरकार तैयारी कर रही है।
दरअसल, भारत में डॉक्टर बनने की इच्छा रखने वाले छात्रों के लिए भारत सरकार अखिल भारतीय स्तर पर प्रति वर्ष NEET की एग्जाम आयोजित करती है। इसमें प्रति वर्ष लगभग 8 लाख छात्र इस एग्जाम को क्लियर कर पाते हैं। देश के मेडिकल कॉलेजों में लगभग 90,000 सीटें हैं और इनमें से आधी सीटें सरकारी मेडिकल कॉलेजों में हैं। ऐसे में बचे हुए स्टूडेंट्स को विदेशों का रुख करना पड़ता है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत के प्राइवेट सेक्टर के कॉलेजों में लगभग 20 लाख रुपए सालाना खर्च होता हैं। वहीं यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई में प्रति वर्ष लगभग 10 लाख रुपए लगते हैं। विदेशों में MBBS की पढ़ाई करने जाने वाले भारतीयों विद्यार्थियों को लेकर संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी का कहना है कि विदेशों में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले करीब 90 फीसद भारतीय छात्र भारत में मेडिकल एडमिशन के लिए होने वाली एग्जाम पास ही नहीं कर पाते हैं।
जोशी ने आगे कहा कि मेडिकल की पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाले 60 फीसद भारतीय छात्र चीन, रूस और यूक्रेन जाते हैं। इन देशों में MBBS कोर्स की कुल फीस करीब 35 लाख रुपए है, जिसमें छह साल की शिक्षा, रहने का खर्च, कोचिंग और भारत लौटने पर स्क्रीनिंग टेस्ट पास करना शामिल है। वहीं, भारत में यह खर्च 45 से 55 लाख रुपए या इससे भी अधिक है। यही वजह है कि ज्यादातर छात्र विदेशों में पढ़ने जाते हैं। बता दें कि भारत से प्रति वर्ष करीब 20,000 से 25,000 छात्र विदेशों में मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए जाते हैं। इसके पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि विदेशों में एमबीबीएस की स्टडी भारत की अपेक्षा बेहद सस्ती होती है।
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