'मदरसों को स्कूल मत बनाओ..', गुवाहाटी हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ SC पहुंचे इमामुद्दीन

'मदरसों को स्कूल मत बनाओ..', गुवाहाटी हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ SC पहुंचे इमामुद्दीन
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गुवाहाटी: असम में मदरसों को स्कूलों में बदलने वाले फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की गई है। सुप्रीम कोर्ट में गुवाहाटी उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती दी गई है, जिसमें उन्होंने असम सरकार के फैसले को यथावत रखा था। इस साल फरवरी में उच्च न्यायालय ने असम रिपीलिंग एक्ट 2020 को बरकरार रखते हुए कहा था कि असम के सभी गवर्नमेंट-फंडेड मदरसे स्कूलों में तब्दील कर दिए जाएं। 

मोहम्मद इमादुद्दीन बरभुइया व अन्य लोगों ने अपनी याचिका में उच्च न्यायालय के इसी आदेश पर रोक लगाने की माँग की है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से कहा गया है कि निरसन अधिनियम और उसके बाद के सरकारी आदेशों ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 28 और 30 के तहत याचिकाकर्ताओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, इस याचिका में कहा गया है कि 2020 का निरसन अधिनियम, मदरसा शिक्षा की वैधानिक मान्यता और संपत्ति को छीन रहा है। गवर्नर का 12 फरवरी 2021 को जारी आदेश 1954 में गठित किए गए असम राज्य मदरसा बोर्ड को भंग कर देता है। यह मदरसों को धार्मिक शिक्षा देने से रोकने के लिए विधायी और कार्यकारी शक्तियों की मनमानी है।

उल्लेखनीय है कि असम के गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने 4 फरवरी को अपने फैसले में कहा था कि सरकार से फंड प्राप्त करने वाले शिक्षण संस्थान मजहबी शिक्षा नहीं दे सकते। उच्च न्यायालय ने सूबे के वित्तपोषित सभी मदरसों को सामान्य स्कूलों में बदलने के असम सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए, मदरसों के लिए भूमि देने वाले 13 मुत्तवली (दानदाता) की याचिका को ठुकरा दिया था।

क्या है असम रिपीलिंग एक्ट-2020 ?

बता दें कि राज्य सरकार ने विधानसभा में असम रिपीलिंग एक्ट-2020 पारित करते हुए इस कानून के आधार पर सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों को विद्यालयों में बदलने का फैसला किया था। इस एक्ट के तहत मदरसा शिक्षा (प्रांतीयकरण) अधिनियम- 1995 और असम मदरसा शिक्षा (कर्मचारियों की सेवाओं का प्रांतीयकरण और मदरसा शैक्षिक संस्थानों का पुनर्गठन) अधिनियम- 2018 को समाप्त कर दिया गया था।

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