देहरादून: दुनियाभर में बढ़ते मंकीपॉक्स के खतरे के बीच उत्तराखंड सरकार ने एहतियात बरतते हुए दिशा-निर्देश जारी कर दिए गए है। इसके अनुसार, मंकीपॉक्स से संक्रमित व्यक्ति की निगरानी की जाएगी। संक्रामक अवधि के चलते किसी मरीज या उनकी दूषित सामग्री के साथ अंतिम संपर्क में आने के बाद 21 दिनों तक प्रतिदिन निगरानी की जानी चाहिए।
वही कई देशों में तेजी से फैल रहे मंकीपॉक्स के संकट को देखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आदेशानुसार उत्तराखंड सरकार ने मंकीपॉक्स के प्रबंधन को लेकर गाइडलाइन जारी की हैं। हालांकि सरकार ने दावा किया है कि देश में अभी तक मंकीपॉक्स का कोई केस सामने नहीं आया है। मंकीपॉक्स एक ऑर्थोपॉक्सवायरस है जो चेचक के समान तो है किन्तु उससे कम गंभीर है। मंकीपॉक्स संक्रमण पॉक्सविरिडे फैमिली के ऑर्थोपॉक्सवायरस जीन से संबंधित है। 1958 में बंदरों में दो चेचक जैसे रोगों का पता लगा था, उनमें से ही एक मंकीपॉक्स था।
चेंबूर के जैन मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल में कंसल्टिंग फिजिशियन एवं इंफेक्शन स्पेशलिस्ट डॉ. विक्रांत शाह के अनुसार, मंकीपॉक्स एक जूनोसिस डिसीज है जो अफ्रीका में अधिकांश जानवरों से मनुष्यों में फैलती है। हिंदुजा हॉस्पिटल एंड मेडिकल रिसर्च सेंट खार में इंटरनल मेडिसिन कंसल्टेंट डॉ. राजेश जरिया के अनुसार, वायरस अति सूक्ष्म जीव होते हैं। कई बार शारीरिक दूरी भी वायरस को रोक नहीं पाती तथा यह बहुत सूक्ष्म कणों के माध्यम से भी एक जीव से दूसरे जीव में चले जाते हैं। मंकीपॉक्स संक्रमित जानवरों या संक्रमित मनुष्यों के शरीर से निकले फ्लूड (छींक, लार, पस आदि) के संपर्क में आने से फैल सकता है तथा इसलिए ही यह इतनी तेजी से फैल रहा है। इस संक्रमण के फैलने की अनुमानित दर 3.3 से 30 फीसदी है। हालांकि, कांगो में हाल में फैले मंकीपॉक्स संक्रमण के फैलने की दर 73 फीसदी थी।
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