शिमला: कुछ समय पहले ही हिमाचल में चार से पांच साल की उम्र में बच्चों को जन्म देने वाली मादा बंदर अब महज दो साल में ही गर्भवती हो रही हैं. ऐसा मौसम में बदलाव के कारण नहीं, बल्कि इन बंदरों को भरपूर खाना मिलने से हो रहा है. जरूरत से ज्यादा खाना मिलने से इनमें समय से पहले बायोलॉजिकल बदलाव हो रहे हैं. प्रदेश की 548 पंचायतें बंदरों से प्रभावित हैं. नसबंदी के बावजूद प्रदेश में बंदरों की बढ़ती संख्या का असल कारण यही है. प्रदेश वन्य जीव विभाग की ओर से शिमला में करवाई कार्यशाला के दौरान रखी शोध रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में एक बंदर की उम्र 25 से 30 साल है. बंदर को जितना खाना चाहिए, उसे अब उससे ज्यादा मिल रहा है. इससे इनका वजन तेजी से बढ़ रहा है और ये दो साल की उम्र में ही गर्भ धारण कर रही हैं.
जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि शिमला में तो बंदर जंक फूड, आइसक्रीम तक के शौकीन हो गए हैं. इनकी संख्या यदि कम करनी है तो पहले इन्हें खाना देना बंद करना होगा. इन्हें जंगलों में शिफ्ट करना पड़ेगा. केंद्र ने बंदर को वर्मिन तो घोषित कर दिया, लेकिन लोगों ने अभी तक सौ से भी कम बंदर मारे हैं. विभाग ने ये भी माना कि नसबंदी जिस रफ्तार से चल रही है, उससे बंदरों की संख्या पर काबू पाने में 20 से 25 साल और लग जाएंगे.
अब तक नसबंदी पर 10 करोड़ खर्च: सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार 2016 के सर्वे के अनुसार प्रदेश में 2.07 लाख बंदर हैं, जबकि 2004 में इनकी संख्या 3.19 लाख थी. अब तक दस करोड़ रुपये इनकी नसबंदी पर खर्च किए जा चुके हैं. वन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार बंदरों से एक हजार तरह की बीमारियां फैलने का खतरा रहता है. इनमें पीलिया, टीबी जैसी बीमारियां मुख्य हैं. जिन इलाकों में इनकी तादाद ज्यादा हैं, वहां एहतियात बरतने की जरूरत है. हालांकि, नसबंदी के दौरान होने वाले टेस्ट में प्रदेश के बंदरों में टीबी की ज्यादा लक्षण नहीं पाए गए हैं.
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