नई दिल्ली - अगर आप एंम्प्लाइज प्रॉविडेंट फंड ऑर्गनाइजेशन (ई.पी.एफ.ओ.) के सदस्य हैं तो आपके लिए सावधान होने का समय है, क्योंकि 10 हजार से अधिक कम्पनियां अपने कर्मचारियों का प्रॉविडेंट फंड काट तो रहीं हैं, लेकिन इसे ई.पी.एफ.ओ. के पास जमा नहीं करा रही हैं. इनमे से 1,195 कम्पनियां सरकारी हैं.
बता दें कि 2,200 कम्पनियों के पास ई.पी.एफ.ओ. का 2,200 करोड़ रुपए बकाया है. इन कम्पनियों को यह पैसा अपने कर्मचारियों के पी.एफ. फंड में अपने कंट्रीब्यूशन के तौर पर जमा कराना था.पी.एफ. न जमा कराने वाली डिफॉल्टर कम्पनियों की संख्या में इजाफा हो रहा है. 2014-2015 में डिफॉल्टर क्म्पनियों की संख्या 10,091 थी. दिसंबर 2015 तक डिफॉल्टर कम्पनियों की संख्या बढ़ कर 10,932 हो गई है.
इस बारे में आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस सैक्रेटरी और ई.पी.एफ.ओ. ट्रस्टी डीएल सचदेवा का कहना है कि हमको वर्कर्स से बड़े पैमाने पर शिकायतें मिल रही हैं कि उनको पी.एफ. से वंचित रखा जा रहा है. इसके अलावा कम्पनियों और ई.पी.एफ.ओ. अधिकारियों के बीच सांठगांठ को लेकर भी शिकायतें मिल रहीं हैं.
उल्लेखनीय है कि प्रॉविडेंट फंड वेतन पाने वाले कर्मचारियों को वित्तीय सुरक्षा मुहैया कराने के लिए होता है. कर्मचारी अपने मासिक वेतन का 12 फीसदी पीएफ फंड में अंशदान देते हैं. कर्मचारी के पीएफ फंड में नियोक्ता को भी अंशदान करना होता है. कर्मचारी के रिटायर होने के बाद या नौकरी से इस्तीफा देने के दो माह बाद पी.एफ. फंड में जमा पूरी रकम निकाल सकते हैं. इसके अलावा नौकरी में रहते हुए घर, एजुकेशन, बच्चों की शादी या मेडिकल रीजन के लिए पीएफ फंड जमा रकम का एक हिस्सा निकाल सकते हैं.
लेकिन इन दिनों ई.पी.एफ.ओ. कर्मचारियों की बचत के कस्टोडियन का रोल नहीं निभा रहा है. ई.पी.एफ.ओ. कर्मचारियों को तब तक नहीं बताया जाता है कि उनकी कम्पनी डिफाल्ट कर रही है ,जब तक कि कर्मचारी क्लेम सेटलमेंट के लिए उसके पास नहीं आता है. ऐसे में क्लेम सेटेलमेंट के लिए इंतजार रहे कर्मचारियों की संख्या बढ़ रही है.