'माँ' एक ऐसा अनमोल शब्द होता है जिसका कोई मोल नहीं होता है. माँ का क़र्ज़ कभी कोई संतान नहीं चुका सकती है. माँ अपने बच्चों को तब तक कंधे पर सुलाती है जब तक उसके बच्चें अपनी माँ को कंधे पर नहीं ले जाते है. इस दुनिया में कई माँ तो ऐसी है जिनके बच्चें उन्हें श्रवण कुमार की तरह प्यार देते है उनका सम्मान करते हैं, लेकिन कुछ ऐसी भी माँ है जो अपने बच्चों के प्यार के लिए, उनके एक दीदार के लिए तरस जाती है. बचपन में माँ कभी अपने बच्चों को प्यार करने में कटौती नहीं करती लेकिन ना जाने क्यों बच्चें माँ को प्यार देने में कंजूसी कर जाते है.
माँ को अगर जन्नत का फूल भी कहा जाए तो भी शायद उसके लिए ये कम होगा. बचपन से लेकर बच्चों के बुढ़ापा आने तक माँ दरवाजे पर खड़ी होकर उसकी राह ताकती रहती है. माँ को कितना भी दुःख दें दो लेकिन वो कभी अपने बच्चों का बुरा नहीं चाहेगी. सड़क किनारे सोने वाली माँ के पास खाने के लिए कुछ नहीं होता है फिर भी वो कही ना कही से अपने बच्चें का पेट तो जरूर भर ही देती है.
कोख के अंदर से लेकर बड़े होने तक माँ सबसे पहले खुद खाने से पहले अपने बच्चें को खाना खिलाती है. कोख के अंदर तो नौ महीने तक माँ कई दर्द झेलकर बच्चें की परवरिश करती है लेकिन बच्चें के जन्म के बाद तो उस बात का अंदाज़ा भी नहीं होता होगा कि उसे जितना दर्द कोख के अंदर नहीं हुआ उससे कई ज्यादा दर्द उसकी वो ही संतान जन्म के बाद देने वाली है.
माँ का मन बहुत ही अनमोल और चंचल होता है. माँ कितनी मासूम होती हैं ना... क्योकि वो कभी अपने बच्चें को गलत समझती ही नहीं है. किसी ने सही कहा है कि- बहुत खुशकिस्मत होते है वो लोग जिनके पास माँ होती है. लेकिन इस समय के हालत देखकर तो शायद ये कहना सही होगा कि- बहुत खुशकिस्मत होती है वो माँ जो अपने बच्चें द्वारा बेइज्जती और अपमान सहने के पहले ही इस दुनिया को अलविदा कहकर चली जाती है.
माँ के लिए सम्मान कभी खत्म नहीं हो सकता,
माँ का क़र्ज़ कभी चुकता नहीं हो सकता,
माँ के प्यार की कभी कमी नहीं हो सकती,
क्योकि माँ से बढ़कर और उससे अनमोल इस दुनिया में कभी कोई हो नहीं सकता....