नई दिल्ली: संसद के जारी मानसून सत्र के दौरान राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि आपराधिक मामलों में सांसदों के विशेषाधिकार नहीं मिले हुए हैं। शुक्रवार (5 अगस्त) को उच्च सदन में उन्होंने कहा कि बीते कुछ दिनों से सांसदों के विशेषाधिकार को लेकर असमंजस बना हुआ है। नायडू ने कहा कि यह गलत धारणा बन रही है कि जांच एजेंसी संसद के सत्र के दौरान सांसदों पर कोई एक्शन नहीं ले सकती है।
नायडू ने संविधान के अनुच्छेद 105 का हवाला देते हुए कहा है कि किसी भी सांसद को संसदीय कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए विशेष अधिकार प्रदान किए गए हैं। उन्होंने कहा कि एक विशेषाधिकार यह है कि किसी भी सांसद को संसद का सत्र या संसदीय समिति की बैठक आरंभ होने से 40 दिन पहले और 40 दिन बाद तक दीवानी मामलों में अरेस्ट नहीं किया जा सकता है। उपराष्ट्रपति नायडू ने आगे कहा कि हालांकि आपराधिक मामलों में ये विशेषाधिकार लागू नहीं होता है। इस प्रावधान से सांसदों को अपराधिक मामलों में रियायत नहीं मिलती है। इसका मतलब है कि अपराधिक मामलों की कार्रवाई में सांसद भी सामान्य नागरिक के समान ही होते हैं और उन्हें संसदीय सत्र या समिति की बैठक के दौरान अरेस्ट भी किया जा सकता है।
नायडू ने इसके लिए वर्ष 1966 में तत्कालीन पीठासीन अधिकारी डॉ जाकिर हुसैन की एक व्यवस्था का जिक्र किया। इसमें कहा गया है कि कोई भी सदस्य संसदीय कर्तव्यों का निर्वहन करने का हवाला देकर जांच एजेंसी के सामने पेश होने से मना नहीं कर सकता है। नायडू ने कहा कि सांसदों को कानून और व्यवस्था की प्रक्रियाओं का पूरी तरह से पालन करना चाहिए। यह सभी पर लागू होता है। जांच एजेंसी से ऐसे मामलों में सत्र का जिक्र करते हुए पेश होने के लिए अगली तारीख की मांग की जा सकती है। नायडू ने इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय के कई फैसलों का भी हवाला दिया।
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