साल 1940 से 1970 के बीच के कई नगमों को सुरीला बनाने वाले मुकेश अब इस दुनिया में नहीं है। मुकेश चंद माथुर के गीत कई संगीतकारों और गायकों के लिए आज भी प्रेरणा हैं। उन्होंने 27 अगस्त 1976 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। मुकेश के गानों की लिस्ट में ‘सावन का महीना’, ‘कभी-कभी मेरे दिल में’, ‘जाने कहां गए वो गीत’ जैसे गीत शामिल है जो आज भी लोगों की पहली पसंद है। 22 जुलाई 1923 को जन्मे स्वर्गीय मुकेश ने सन् 1945 में संगीत की दुनिया में कदम रखा था।
इंडस्ट्री में कदम रखने के बाद तीन दशकों तक वो बेहद लोकप्रिय रहे और उन्होंने फिल्मी और गैर फिल्मी गानों के अलावा उर्दू, पंजाबी और मराठी गानों को भी अपनी आवाज से जगमग कर दिया। मुकेश के शुरुआती गीत बताते हैं कि वह कुंदन लाल सहगल से कितने प्रभावित थे। उनके गानों में ‘दिल जलता है तो जलने दे’ शामिल है। कहा जाता है स्वर्गीय राज कपूर, दिलीप कुमार, देव आनंद, शम्मी कपूर, राजेश खन्ना सब पर मुकेश के सुर ऐसे जमे की इतिहास बन गया। मुकेश का गाना ‘क्या खूब लगती हो’ और ‘धीरे धीरे बोल कोई सुन न ले’ बेहतरीन गीतों की लिस्ट में शामिल हैं। इसी के साथ ही ‘जाने कहां गए वो दिन’ और ‘जीना यहां, मरना यहां’ जैसे गाने गाकर मुकेश ने सभी का दिल जीत लिया। मुकेश ने उदासीभरे गीतों को गाकर भी लोगों को मदहोश किया।
इस लिस्ट में ‘चल री सजनी अब क्या सोचे’ और ‘आंसू भरी हैं ये जीवन की राहें’ जैसे गाने शामिल हैं। एक बार तो मुकेश को लेकर राज कपूर ने यह तक कह दिया था- ‘अगर मैं जिस्म हूं तो मुकेश मेरी आत्मा।’ वैसे मुकेश ने हर संगीतकार के साथ काम किया। इस लिस्ट में नौशाद, कल्याण जी-आनंद जी, खय्याम, लक्ष्मीकांत-प्यारे लाल शामिल हैं, लेकिन शंकर-जय किशन के साथ उनकी जो रूहदारी बनी, वह राज कपूर, नर्गिस दत्त के हवाले से भी अमिट इतिहास है। मुकेश ने ‘रमैया वस्तावैय्या’, ‘आवारा हूं’ और ‘मेरा जूता है जापानी’ जैसे गीत देकर अलग नाम कमाया। फिलहाल वह इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनकी गीतों से देश-विदेश सब गूंजते हैं।
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